________________
१४]
है भैरव पद्मावती कल्प
तथा विद्वेषणकर्ममें उच्चाटन और प्रतिषेधकर्म में पुत्रजीवकी बनाई हुई मणिसे १०८ जप करे।
मोक्षाभिचारशान्तिकवश्याकर्षेषु योजयेत्क्रमशः । अंगुष्ठाद्यंगुलिका मणयोंऽगुष्ठेन चाल्यन्ते ।। १२॥
भा० टी०-चन मणियोंको मोक्षकी इच्छावाला अंगूठे, अभिचार कर्ममें तर्जनी, शांतिक तथा पोष्टिककर्ममें मध्यमा, चशीकरणमें अनामिका और आकर्षण कर्ममें कनिष्ठासे चलावे।
पीतारुणासितैः पुष्पैः स्तम्भनाकृष्टिमारणे ।
शान्तिकपौष्टिकयोः श्वतैः जपेन्मत्रं प्रयत्नतः ॥ १३ ॥ भा० टी०-स्तम्भनमें पीले और आकर्षणमें वनके लाल पुष्पो तथा मारणमें काले पुष्पोंसे शांतिक और पौष्टिक कर्ममें बनके काले युष्पोंसे यत्नपूर्वक जप करे।
पद्मावतीको सिद्ध करनेका विधान
अनुष्ठानमें समीप रखनेका यंत्र चतुरस्त्र विस्तीर्ण रेखात्रयसंयुतं चतुरिम् । विलिखेत्सुरंभिद्रव्यर्यन्त्रमिदं हेमलेखिन्या ॥ १४ ॥ भा० टी०- इस यन्त्रको सोनेको कलमसे सुगन्धित द्रव्योंसे चौकोर, विस्तीर्ण, तीन रेखा सहित चार द्वारवाला बनावे।
धरणेन्द्राय नमोऽधःच्छदनाय नमस्ततोर्द्धच्छदनाय नमः । पनच्छदनाय नमो मन्त्रान्वेदादिमायाद्यान् ॥ १५॥ .