SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४.] हैं भैरव पद्मावती कल्प मुखपरके वस्त्र अथवा कृष्णाष्टमीको युद्ध में मरे हुये योद्धाके वस्त्रपर लिखे। कन्याकर्तितसूत्रं दिवसेनकेन तत्पुनर्वोतम् । तम्मिन् हरितालाद्यैः कोरंटक्लेखनी लिखितम् ।। २०॥ भा० टी०-कन्या द्वारा कते हुये सूतवा एक दिनमें ही कपड़ा बुनवा कर उसपर इस यन्त्रको कोरटककी कलम और हरिताल आदिसे लिखे। पद्मावत्या. पुरतः पीतैः पुरा समभ्यय॑ । यन्त्रपटं बध्नीयाग्मख्याते चोन्नतस्तम्भे ॥२१॥ । भा० टी०-फिर इस यन्त्रको पद्मावतीदेवीके सामने पीले पुष्पोंसे पूजन करके इसको एक अत्यन्त ऊचे प्रसिद्ध स्तंभमें बांध दे। तं दृष्ट्वा दूरतरान्नश्यन्ति भयेन विह्वलीभूताः । विरचितसेनाव्यूहात्संग्रामेऽशेषरिपुवर्गा. ॥ २२ ॥ __भा० टी०-इस यन्त्रको दूरसे देखकर युद्धमें सेनाका व्यूह बनाये हुये सब शत्रु लोग भयसे विह्वल होकर भाग जाते हैं। इति भैरव पद्मावतोक्लरकी भाषाटोक में 'रतम्भन यन्त्राधिकार' नामका पंचम परिच्छेद समान ।
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy