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प्रतिदिन पूजन करके इसको हाथमें बांधने से यह तीन लोकको मोहित करता है । मन्त्रोद्वार
“ कीं ऐं ह्रीं देवदत्तस्य सर्वजनवश्यं कुरुर वषट ।" दूसरेको सुलानेका मन्त्र
भ्रम युगलं केशिभ्रम माते भ्रम निभ्रमं च मुह्य पदम् । मोहय पूर्णैः स्वाहा मन्त्रं यं प्रणय पूर्वगतः ॥ २२ ॥
भैरव पद्मावती कल्प
ज
मन्त्राद्धार-
“ ॐ भ्रमर केशिभ्रम मातेभ्रम विभ्रमं मुझर मोहयर पूर्णः पूर्णः
स्वाहा |
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एतेन लक्षमेक भूमिसंप्राप्त सर्षपैर्जप्त्वा ।
क्षिम गृहदेहल्यामकाळ निद्रां जनः कुरुते ॥ २३ ॥
भा० टो० - इस मन्त्रको पृथ्वीपर न गिरी हुई सरसोंसे एक लक्ष जप कर वह सरसों जिस घरकी देइलीपर डाली जाती उ घरवालोंको असमय में निद्रा आ जाती है ।
रण्डयक्षिणीकी सिद्धि
मृत विधात्राह्मण्याः पादताळक्तकेन परिलिखितम् । तद्वक्त्र पिहितवत्रे विधवा रूपं निराभरणम् ॥ २४ ॥ भा० टी० - मृतक विधवा ब्राह्मणी के पैरके अलकृकसे उसके मुखके ढकनेके बखपर बिना आभरणवाढी विधाका रूप बनावे | प्रणवं विदे मोहे स्वाहान्तं सप्तलक्षजाप्येन |
एकाकिनी निशायां सिध्यति सा यक्षिणी रण्डा ॥ २५ ॥
भा० टी० - " बिचे मोहे खाहा" इस मन्त्रका अकेले रात्रि के समय सात उम्र जप करनेसे वह रण्डा यक्षिणी सिद्ध होती है ।