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भैरव पद्मावती कल्प
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भा० टी० - मन्त्री " ग्लौं कौं घे घे" इस मन्त्रित करके उसको नील वर्णका ध्यान करके विषनाशन तन्त्र
मन्त्र से विषको शत्रुको देवे ।
मुगन्धा घोषा वन्ध्याकटुतुम्बिका कुमारी च । त्रिकटुकुष्टेन्द्रयवा घ्नन्ति विषं नस्य पानेन ॥ ३९ ॥
भा० टी० - अगस्त्य, असगध, घोषा (तोरई), बन्ध्या (कर्कोटी), कड़वी तुम्वी, घृतकुमारी, त्रिकटु (सोठ, पीपल, काली मिरच), कूठ और इन्द्रजौको संघाने और पिलानेसे स्थावर और जंगम सभी विष नष्ट हो जाता है ।
विच्छु विषनाशन तन्त्र
द्विपमतमूतच्छत्रं रविदुग्धं श्लेष्मतरुफलोपेतम् । वृश्चिकविष सकाम वदरीतरुदण्डसयोगात् ॥ ४० ॥
भा० टी० - हाथी की लीद, छतौना, आकका दूध और बहेडेके फलको पीसकर रक्खे | और पुष्य नक्षत्र में ऊपर और नीचे कांटोवाली बेरकी सलाईको लेकर उससे इस करे, ऊपर के वांटेसे विषको उतारकर नीचे के विषको किसी औरपर चढ़ा दे ।
औषधिका लेप काटेसे विच्छूके
घर से सर्प भगाने का यन्त्र
षट्कोणभवनमध्ये कुरुकुल्लां योतिखेद्गृहे विद्याम् । तत्र न तिष्ठति नागा लिखिते नागारिबन्धेन ॥ ४१ ॥
भा० टी० - घर की देहली में एक षट्कोण यन्त्र बनाकर उसमें निम्नलिखित गरुड बन्ध मन्त्र लिखनेसे सर्प उस घर से भागा जाता है ।