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________________ ROIN १०२] है भैरव पद्मावती कल्प भा० टी०-अग्निसे जलाये हुये नागमें उसका दुगना पारद रस डालकर उसको अगम्त्य, काले धतूरे, नागदमन और मालकंगनी, डिकन मर्दयित्वा गणिकार्या मदन वलयकं कृत्षा। रतिसमये पनितानां रतिदर्पविनाशनं कुरुते ॥ ३१ ॥ भा० टो०-और कनेरके रसोंके साथ मल कर लिंगपर लेप करनेसे रतिकालमें मद नष्ट हो जाता है। द्रावण जेप-(द्वितीय) व्याघ्रीवृहती फरससूरणकण्डूतिवर्णकपत्राम्बु । कपिलकच्छुचवल्लो पिप्पलिकामाब्लिकाचूर्णम् ।। ३२ ।। भा० टी०-व्याघ्रो और वृहतीके फोका रस सफेद जमीकन्द कहति (अग्निक), चणकके पत्तोंका रस, कौंच, वज्रवेल, पीपल और मान्छिकाके चूर्ण को लेकर, अग्न्या वर्तितनाग नववार भावयेदिदं द्रव्यैः।। स्मरवलयं कृत्वैवं पनितानां द्रावणं कुरुते ।। ३३ ।। भा० टी०-इन द्रव्योंमें अग्निसे जलाये हुये नागको नौ पार भावना देकर यदि लिङ्ग पर लेप करे तो त्रियां द्रवित होती हैं। द्रावण जलूका भानुस्वरजिनसङ्ख्याप्रमाणसूतकग्रहीतदीनारान् । अकोल राजवृक्ष कुमारीरसशोधन कुर्यात् ॥ ३४ ॥ भा० टी०-बारह, सोलह और २४ दोनार (आधा तोला) अर्थात् ६ तोले ८ तोले और १२ तोले प्रमाण पारद रसको पृथक्२ लेकर उसे अंकोलके रस, राज वृक्ष (अमलतास) के रस तथा घी कुपारके रसमें शोधन करे।
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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