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खें भैरव पद्मावती कल्प
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भा० टी०-निम्नलिखित मेरुण्डादेवीके मन्त्रको दष्ट पुरुषके कालने जपने और उपको निम्नलिखित सुवर्ण रेखा मन्त्रके जलसे स्नान करानेले दष्ट पुरुषका विष उतर जाता है।
भेरुण्डादेवीका मन्त्र ॐ एहि२ मारते भेरुण्डे विनाभरियकरण्डे तन्तु मन्तु आधेसह हुंकारेण शिषणासइ थावरजंगमशित्तिममगजू ह्रीं देवदत्तस्य विष हर हर ॐ हुं फट्।
सुवर्णरेखा मन्त्र "ॐ सुवर्णरेखे कुकुट विग्रहरूपिणि स्वाहा ।"
विषनाशन मन्त्र द्वितीय भूजलमरुममोऽक्षरमन्त्रेण घटाम्बुमंनितं कृत्वा । पादादिविहिवधारानिपातनाद्भवति विषनाशः ।। १३ ॥
"क्षिप स्वाहा ।" भा० टो०-इन मंत्रसे घड़ेके जळको मंत्रित करके सिरसे पैर तक डालनेसे विष नष्ट होता है।
आठ प्रकारके नागोंका वर्णन अनन्तो वासुकिस्तक्षः कर्कोटः षद्मसंज्ञकः । महासरोजनामा घ शंखपाळस्तथा कुलिः ॥ १४ ॥ भा० टी०-अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोट, पद्म, महापद्म, शंखपाल और कुलिक यह नागोंके माठ भेद होते हैं।
क्षत्रियकुलसम्मूतो वासुकिशंखौ धराविषौ रक्कौ । कर्मोटकपद्मावपि शूद्रौ कृष्णौ च पारुणीय गरौ ।। १५ ।। भा० टी०-वासुकि और शंखपाल नाग क्षत्रिय कुलोत्पा,