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- भैरव पद्मावती कल्प
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भा० टी०-ब्लें ह्रीं क्ष और ठ से घिरे हुये अपने नामको लिखकर उसके बाहिर अष्ट दल कमल बनावे। उसके पत्रोंमें पद्मावतीका मूल मन्त्र लिखकर उसको आकर्षण पल्लव (संवौषट्) से वेष्टित करदे।
मन्त्रोद्धार
" ॐ ह्री हैं हालों पद्म पद्मकायिने नमः।" यन्त्र ततश्चार्द्ध शशिमवेष्यं विलिख्य यन्त्रं फडके वटस्य । गोरोचनासयुक्तकुंकुमाद्यः साध्यस्य नानारुगचन्दनेन ।। ७ ॥
भा० टी० - फिर इस यन्त्रको अर्धचन्द्राकार रेखासे घेरकर चटवृक्षकी तखतीपर गारोचन या केशर आदिसे लिखें। साध्यके नामवाले यन्त्रको लाल चन्दनसे लिखें।
कृत्वा ततश्वोभयसम्पुटञ्च श्रीपार्श्वनाथम्य पुरोनिवेश्य । सन्ध्यासु नित्य करवोरपुष्पैर्भवेदवश्य जपतःसुमाध्यम् ॥ ८॥
भा० टो०-तब उन दोनोंका मुख मिलाकर श्री पार्श्वनाथ भगवान के सामने रखकर प्रातः साय और दोपहर तीनों संध्याओंमें कनेरके फूलों पर जप करनेसे यन्त्र सिद्ध होता है।