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________________ - भैरव पद्मावती कल्प [६९ भा० टी०-ब्लें ह्रीं क्ष और ठ से घिरे हुये अपने नामको लिखकर उसके बाहिर अष्ट दल कमल बनावे। उसके पत्रोंमें पद्मावतीका मूल मन्त्र लिखकर उसको आकर्षण पल्लव (संवौषट्) से वेष्टित करदे। मन्त्रोद्धार " ॐ ह्री हैं हालों पद्म पद्मकायिने नमः।" यन्त्र ततश्चार्द्ध शशिमवेष्यं विलिख्य यन्त्रं फडके वटस्य । गोरोचनासयुक्तकुंकुमाद्यः साध्यस्य नानारुगचन्दनेन ।। ७ ॥ भा० टी० - फिर इस यन्त्रको अर्धचन्द्राकार रेखासे घेरकर चटवृक्षकी तखतीपर गारोचन या केशर आदिसे लिखें। साध्यके नामवाले यन्त्रको लाल चन्दनसे लिखें। कृत्वा ततश्वोभयसम्पुटञ्च श्रीपार्श्वनाथम्य पुरोनिवेश्य । सन्ध्यासु नित्य करवोरपुष्पैर्भवेदवश्य जपतःसुमाध्यम् ॥ ८॥ भा० टो०-तब उन दोनोंका मुख मिलाकर श्री पार्श्वनाथ भगवान के सामने रखकर प्रातः साय और दोपहर तीनों संध्याओंमें कनेरके फूलों पर जप करनेसे यन्त्र सिद्ध होता है।
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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