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हैं भैरव पद्मावती कल्प
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यन्त्रमानिलिखेदिदं हिमकुङ्कमागुरुचन्दनः। मूर्जके फडकेऽथवा मुवि गोमयेन विमार्जिते ।। प्रत्यहं विधिना समं जपतोऽरूणप्रसवै भृशं ।। तस्य पादसरोजषटपदसनिभं भुवनत्रयम् ।। १० ।।
भा० टी०-इस यत्रको भोजपत्र, बटको तखती अथवा गोबरसे लीपकर शुद्ध की हुई भूमिपर कपूर, केशर, अगरु ब चन्दनसे लिखकर प्रतिदिन निम्नलिखित स्त्रका लाल कनेरके फूलोंसे विधिपूर्वक जप करनेवालेके चरण कमलोंमें जगत भौरेके समान लौटार फिरता है। मन्त्रोद्धार-- 'ॐ ह्रीं हल्ली ब्लें हैं असि मा उ वा अनाहत विद्य यै नमः।
यन्त्र संख्या ३४-वश्य यन्त्र तृतीय
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