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भैरव पद्मावती कल्प
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. (फान, बांस, दांत जोर जीभ मट तथा वीर्य को अपने पांघों मन करते है।)
सीव गुटिका करवीरमुजवाझीधारिदण्णीन्द्रयारुगी
गोबन्धिनीपललानां विधाय बटिका बहुः ।। ५ ॥ भा० टो०-लाल कनेर, गुजंगाक्षि जटा ब्रह्मदण्डी, इन्द्रायन, गोबन्धनी, (अधोपुष्पी या प्रियंगु), बजावती के चूर्णकी गोलियां बनावे।
कटिकामिः समं क्षिप्त्वा लवणं शुभभाजने । पक्स्पास्वसूत्रतो दद्यात्वाचं स्त्रीजनमोहनम् ।। ६॥ भा० टी०-उन गोलियोंको वरावर नमक सहित एक वर्तनमें राकर अपने मूत्रमें पकाये । इन गोलियों को भोजन आदिके साथ खिगनेसे स्त्री वशमें होती है।
वश्य चूर्ण मृतमुजगवदनमध्ये उन्नीरकांस निधाय सितगुज्जाम् । रुद्रजरामम्मिश्रामाकृष्य दिनत्रयं यावत् ।। ७ ।। भा० टी०-मृत सर्पके मुखमें उज्जरिका (लज्जालु,) सफेदगुजा और उद्रजटाको रखगर तीन दिन पश्चात् निकाले ।
जागठिकायाः कन्दे गोमयलिप्ते परिक्षिपेच्चूर्णम् । परिभाव्य शुनिपयसा स्वमलैः पञ्चाङ्गसम्भूतैः ।। ८॥ भा० टी. उस चूर्णको काठी कुत्तीके दूध और अपने पांचों मों में भाषित करके गोबरसे छिपे हुये कलिहारी कन्दमें राले।
पक्त्वा चूर्णमिदं पश्चाज्जगद्वश्यकरं परम् । दद्यात्साद्यानपानेषु मी'मोश्च परस्परम् ॥ ९॥. .