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भैरव पद्मावती कल्प
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द्वादशपत्राम्बुरुहं मलवरयूंकारसंयुतं कूटम् । तन्मध्ये नामयुत विलिखेत् ककारसंरुद्धत् ॥ १ ॥
भा० टी० - एक द्वादश दल कमल बनाकर उनकी कर्णिका में क्लोंसे रुके हुये तथा मध्यमें नाम सहित क्षम्यू बीजको लिखे ।
विलिखेज्जयादिदेवी स्वाहान्तोऽङ्कार पूर्विका दिक्षु | झमपिण्डोपेता बिदिक्षु जम्भादिकास्तद्वत् ॥ २ ॥
भा० टी० - उसके पूर्व आवि दिशाओंोंके दलोंमें जन्भादि देवियोंको आदिमें ॐ और अन्तमें नमः लगाकर लिखे । तथा बिदिशाओं में झ भ म ह के पिण्डों सहित जम्मा आदि देवियों को लिखे ।
मन्त्रोद्धार -
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पूर्व - ॐ जयायै स्वाहा | अग्नि
इल्यू जम्भायै स्वाहा |
क्षिण - ॐ विजयायै स्वाहा । नैऋत्य — ॐ भ्यू मोहायै स्वाहा | पश्चिम - ॐ अजितायै स्वाहा ।
वायव्य — ॐ क्यूँ स्तम्भाय स्वाहा । उत्तर - ॐ अपराजितायै स्वाहा । ईशान - ॐ हयू स्तम्भिन्यै स्वाहा |
उद्धरितदलेषु ततो मकरध्वज बीजमा लिखेचतुर्षु । गजवशकरणनिरुद्धं कुर्यात्त्रिर्भाययाssवेष्टम् ॥ ३ ॥
भा० टी०-दिशा तथा विदिशाओंके आठों पत्रोंका