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र भैरव पनावती कल्प
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भा. टी--एक चित्र मपनी इच्छित स्त्रीका बनाकर उसके मुझमें ही, योनिमें ब्लें, कण्ठमें हक्लीं, नाभिमें क्ली, हृदयमें हूं तथा स्त्रीका नाम लिखे।
नाभितले ब्लोकारं वेदादि मस्तके च संबिलिखेत् । स्कन्धमणिबन्धकूपरपदेषु तत्त्वं प्रयोक्तव्यम् ।। १३ ।। भा० टी०--नाभिके नीचे ब्लू मन्तकमें ॐ तथा कंधों, हाथकी कलाई कनपटो और पैरोंमें ह्रीं वीजको लिखे ।
तस्ततले य्यू कारं सन्धिषु शाखासु शेषतो रेफान् । त्रिपुटितवह्निपुरत्रयमध तबाह्ये प्रदेशेषु ॥ १४ ॥ हथेलियोंमें यूं जोड़, अगुलियो और शेष अगोंमें रेफ लिखकर उसके बाहिर तीन अग्नि मण्डलोंकी पुट बन वे ।
कोष्टेषु मुवननाथं कोष्ठाप्रान्तरनिविष्टमङ्कुशबीजम् ।
वलयं पद्मावत्या मन्त्रेण करोतु तद्बाह्ये ॥ १५ ॥ भा० टी०-उस अग्नि मण्डलकी पुट के नौ कोठोसें ह्रीं तथा कोठोंके ऊपर क्रों चीज लिखे। उसके चारों ओर पद्मावतीके निम्नलिखित मन्त्रका वलय बनावे । । पद्मावतीका मन्त्र__'ॐ ह्रीं हैं हृत्क्ली पने पद्मकटिनि अमुकां मम बश्याकृष्टिं कुरु कुरु संवौषट् ।'
अंकुशरोधं कुर्यात्तद्वाह्ये मायया विधाऽऽवेष्ट्यम् । यावक्मलयज चन्दनकाश्मीराद्यैरिदं लिखेद्यन्त्रम् ॥ १६ ॥ भा० टी.-उसके वाहिर तीनबार हीसे वेष्ठित करके क्रोंसे निरोध करदे । इस यन्त्रको भक्तक, अगरु, चन्दन तथा केशर मादिसे रिखे।