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________________ हैं भैरव पद्मावती कल्प [९ · भा० टी०-फिर आय (भागफल) में भाग देकर निकले हुये शेषको बुद्धिमान् आदिमें एक पंक्तिमें रखे । यदि वह एक हो तो सिद्ध, दो हो तो साध्य, तीन हो तो सुसिद्ध और चार अर्थात शून्य हो तो शत्रु जानना चाहिये । सिद्धसुसिद्धं ग्राह्यं साध्य शत्रं च वर्जयेद्धीमान् । सिद्धसुसिद्धे फलदे विफलं साध्ये रिवापाये ॥ १७ ॥ भा० टी०-इनमेसे बुद्धिमान् सिद्ध और सुसिद्ध मंत्रको ग्रहण करले और साध्य तथा शत्रुको छोड़ देवे। क्योंकि सिद्ध और सुसिद्ध फलको देते हैं तथा साध्य और शत्रु हानि करते हैं। फलद कतिपय दिवसः सिद्ध चेत्साध्यमपि दिनबहुभिः । झटिति फलद सुसिद्धं प्राणार्थविनाशनाशनः शत्रुः ॥१८।। भा० टी०-सिद्ध कुछ दिनोंमें ही सिद्ध हो जाता है, साध्य बहुत दिनों में सिद्ध होता है, सुसिद्ध शीघ्र फल देता है, तथा शत्रु प्राण और प्रयोजन दोनों का ही नाश करता है। आदावन्ते शत्रुर्यदि भवति तदा परित्यजेन्मन्त्रम्। स्थानत्रितये शत्रुमृत्युः स्यात्कार्यहानिर्वा ।। १९ ।। भा० टो०-यदि मत्र आरम्भ करनेपर आदिमें अथवा मंत्रके अन्त में शत्र हों तो मत्रको छोड़ दे। यदि आदि, मध्यम और अन्त तीनों स्थानोंमे शत्रु हो तो या तो कायका नाश होता है या अपनी मृत्यु हो। शत्रुर्भवति यदाऽऽदौ मध्ये सिद्धं तदन्तरं साध्यम् । कष्टेन भवत्येव हि सिद्धिर्लभते फल अल्पम् ॥२०॥
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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