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________________ है भैरव पद्मावती कल्प तेजो ह्रींकारपूर्वोक्ता नमः शब्दावसानगाः । अकारादि हकारान्तान्केशरेपु नियोजयेत् ॥ २२॥ भा० टी०-उसके बीच में एक अष्टदल कमल बनाकर उसके आठों दलोंमें मादिमें 'ॐ ह्रीं' और अन्तमें नमः लगाकर 'अनङ्गकमला' आदि देगियोंको लिखे । इसका मन्त्रोद्धार । पूर्व~ॐ ह्रौं अनङ्गकमलायै नमः । अमि-ॐ ह्रीं पद्मगन्धायै नमः । . दक्षिण-ॐ ह्रीं पह्मास्याय नमः । नेऋत्य-ॐ ह्रीं पनमालाय नमः। पश्चिम-ॐ ह्री मदनोन्मादिन्यै नमः । मायव्य-ॐ ह्रीं कामोद्दीपनायै नमः। उत्तर- हीं पद्मपर्णायै नमः। ईसान-ॐ हौं त्रैलोक्यझोमिण्यै नमः । भा० टी-फिर उस कमलकी कणिकामें परागके स्थानमें अधारसे लेकर कार तक सब बोंको लिखे । भफियुतो भरनेश: चतुः कडायुक्तकृट मम देव्याः । पर्णचतुष्कनमोऽन्ताः स्थाप्याः प्राच्यादिदिनु पारहिः ॥२३॥ सस मरके माहिर पारों दिशामोंमें निम्नलिखित मन्त्र निरु
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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