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________________ अनुवादकको प्रस्तावना मन्त्र शास्त्रका विषय जैन शास्त्रों में द्वादशांग वाणी जितना ही पुराना है। द्वादशांग वाणीके बारह अंग बोदह पूर्यो में से विद्यानुवाद पूर्व यन्त्र, मन्त्र तथा तन्त्रोंका सबसे बड़ा संग्रह है। हमारा मूल मन्त्र णमोकार मन्त्र मी एक मन्त्र ही है और उससे इहलौकिक तथा पारलौकिक सभी प्रकार के लाभ होते हुए देखे गए हैं। __ मन्त्र शासकी वैदिक परम्परामें भी जैन यन्त्रोंके महत्वको स्वीकार किया गया है, वहां तो यहां तक लिखा हुआ है कि वैदिक मन्त्रोंको सो शिवजीने कील दिया था, लतएल ना कलियुगमें सिद्ध नहीं हो सकते । किन्तु जैन मन्त्रों को बिना विचारे ही सिद्ध किया जा सकता है। ___ क्रमशः भगवान महावीर के निर्वाणके बाद तीन लेवलियोंका निर्वाण होने पर बम्पूर्ण द्वादशांग बाणीशा अस्तित्व पांचवें तथा मन्तिम श्रतक्लो सद्दास्थामीके समय तक तो बना रहा. किन्तु उसके बाद उसमें उत्तरोत्तर क्रमशः न्यूनता होने लगी। चारह अंगोंझा लोप होने पर भी पूर्व ज्ञान उनके वाद तरफ भी बना रहा, उसमें भी विद्यानुमादका अस्तित्व तो बहुत वादतक बना रहा। ___ छाजकल जो जयपुर तथा अजमेरले भण्डारों में विद्यानुवाद नामसे यन्त्र मन्त्र तथा तन्त्रका पूर्व प्रन्य मिलता है, पास्तबमें वह विद्यानुबादपूर्व नहीं है। यह तो तत्कालीन मन्त्रोंछे ग्रन्ध को देखकर उन सबका संग्रह प्रभ है। इस प्रन्यका संग्रह सुकुमारसेन नामक एक मुनिने करके उसका नाम विद्यातुशासन रखा था।
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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