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भैरव पनाती कल्प
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शीर्षास्य हृदय नाभौ पादौपानङ्गवाणमथ योज्यम् ।
सम्मोहनमनुलोम्ये विपरीते द्रावणं कुरुते ॥ २९ ॥ भा० टी०-शिर, मुख, हृदय, नाभि और पैरोंमें कामदेवके पांच बाणं 'द्रां द्रीं क्लीं ब्लू स:' को इसी सीधे क्रमसे लगानेसे सम्मोहन और उलटे क्रममें लगानेसे द्रावण होता है।
दयात्ताम्बूलगन्धादीन्स्मरबाणाभिम त्रितान् ।
क्षालयेदात्मवक्त्रं च स स्त्रीणां मन्मभो भवेत् ॥ ३०॥ भा० टी०-कामके वाणोंसे अभिमंत्रित करके तांबूल इत्र आदि देवे और उसी मन्त्रसे अपने मुखको धोवे, इस प्रकार वह त्रियोंका कामदेव हो जाता है।
मन्त्रोद्धार
“ओं द्रां द्रीं क्लीं ब्लू स: इक्की एं नित्य क्लिन्ने मदद्रवे ह्रीं सर्वजनं मम नश्यं कुरु २ वषट् ॥" सिन्दूरारुणवाससन्निभप्रभंब्लेकारसपिंडकम् ,
___ कान्तागुह्मगत प्रसंचलितमित ध्यात्वा मनोरञ्जितम । लाक्षारागमविन्दुवर्षवर्ष प्रस्यन्दि कामादराव , सप्ताहेन वशं करोतु बनीतां तत्तत्र चित्रं कुतः ।। ३१॥
भा० टी०-सिन्दूरिया लालवस्त्रले समान प्रभावाले उत्तम पिण्ड ब्लेंको स्त्रीके योनिस्थानमें तेजीसे धूमता हुआ मतको प्रसन्न करनेवाला, लाखकी लालिमाकी बून्दोंके समूहको वरसाकर बहाता हुमा-ध्यान करनेसे स्त्री कामके वेगसे यदि एक सप्ताहके अन्दर ही वशमें आ जाने तो: इसमें क्या आश्चर्य है। {" . विचिन्तयेदेवलपिंडमेकं सिन्दूरवण वनितावराङ्गले, ..
तद्भावणं दृष्टिनिपासमात्रात्सप्ताहतोऽप्यानयनं करोतिः।। ३२ ।।