________________
२८
विश्वतत्त्वप्रकाशः
स्वतन्त्र ग्रन्थरचना करना ही उचित समझा। केवल बारहवें दृष्टिवाद अंग का कुछ अंश उन्हों ने घटखण्डागम तथा कषायग्राभत इन दो ग्रन्थों में लिपिबद्ध किया ।
आगम के उपदेश की परम्परा महावीर के बाद जिन आचायों के नेतृत्व में चलती रही उनके नाम दिगम्बर परम्परा के अनुसार इस प्रकार हैं-गौतम, सुधर्म, जम्बू, विष्णुनन्दि, नन्दि मित्र, अपराजित, गोवर्धन, भद्रबाहु, विशाख, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नागसेन, सिद्धार्थ, धृतिषेण, विजय, बुद्धिल, गंगदेव, धर्मसेन, नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु, ध्रुवसेन, कंस, सुभद्र, यशोभद्र, भद्रबाहु ( द्वितीय ) तथा लोह । इन का सम्मिलित समय ६८३ वर्ष तक है। श्वेताम्बर परम्परा में यह नामावली इस प्रकार है-गौतम, सुधर्म, जम्बू, प्रभव, शय्यम्भव, यशोभद्र, सम्भूति विजय, भद्रबाहु, स्थूलभद्र, सुहस्ती, सुस्थित, सुप्रतिबुद्ध, इन्द्रदिन्न, दिन, सिंहगिरि, वज्र, वज्रसेन तथा चन्द्र । श्वेताम्बर परम्परा में इन आचार्यों के शिष्य प्रशिष्यों के कुछ अन्य नाम भी मिलते हैं।
__ इन सब आचार्यों का आगम में क्या योगदान रहा यह अलग अलग बतलाना सम्भव नही उन सब का एकत्रित स्वरूप ही हमें देवर्षि द्वारा सम्पादित वर्तमान आगमों में प्राप्त होता है। उस सयय तक अंग ग्रन्थों के अतिरिक्त प्राचीन आचार्यों द्वारा रचित कुछ अन्य ग्रन्थ भी आगम के तौर पर सम्मत हुए थे। ऐसे अंगबाह्य आगमों में दशवैकालिक आदि चार मूलसूत्र, बृहत्कल्प आदि छह छेदसूत्र, औपपातिक आदि बारह उपांग, चतु:शरण आदि दस प्रकीर्णक एवं नन्दीसूत्र तथा अनुयोगद्वारसूत्र इन चौतीस ग्रन्थों का समावेश होता है ।
६. वर्तमान आगम में तार्किक भाग--वर्तमान आगम में विशुद्ध रूप से तर्काश्रित ऐसा कोई ग्रन्थ नही है । तथापि कुछ ग्रन्थों में तर्क के लिए आधारभूत पूर्वपक्ष, प्रश्नोत्तर आदि का समावेश है। इन का विवरण इस प्रकार है।
सूत्रकृतांग-वर्तमान सूत्रकृतांग के दो श्रुतस्कन्धों में कुल २३ अध्ययन हैं। इन में चार-पहला समय अध्ययन, बारहवां समवसरण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org