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-४९] मायादादविचारः
१६७ बिम्बादिप्रतिबिम्बवत्। तस्मात् वर्तमाननानादेहेष्वप्येक एव भूतात्मा तिष्ठतीति चेन्न । तदसंभवात् । तथा हि। लौकिकैः परीक्षकैश्चक्षुर्ग्राह्येष्वेव' चक्षुर्याहाणामन्यत्र स्थितेष्वितरत्र स्थितानां च प्रतिबिम्बो दृश्यते यथा मणिदर्पणजलपात्रादिषु सूर्यचन्द्रबिम्बादीनां नान्यथा। तथा च पर ज्योतिर्मनसि न प्रतिबिम्बते अचाक्षुषत्वात् अरूपित्वात् अमूर्तत्वात् विश्वव्यापित्वात् अन्यत्रास्थितत्वात् आकाशवत्। मनो वा न ब्रह्मप्रतिबिम्बवत् अविद्याकार्यत्वात् जडत्वात् इन्द्रियत्वात् ब्रह्ममध्ये स्थितत्वात् चक्षुर्वत् । अन्यथा चक्षरादिबुद्धीन्द्रियेषु वागादिकर्मेन्द्रियेषु शिरोजठराद्यङ्गोपाङ्गेष्वपि परंज्योतिषः प्रतिबिम्ब स्यात् । एवं च एकस्मिन्नपि शरीरे यावन्ति बुद्धीन्द्रियकर्मेन्द्रियाङ्गोपाङ्गानि तावन्तः प्रमातारः स्युः। तथा च विभिन्नाभिप्रायबहुप्रमातृभिः प्रेरितमेकं शरीरं सर्वदिक्रियमुन्मथ्येत अक्रिय वा प्रसज्यते । तस्मात् परं ज्योतिर्मनसि न प्रतिबिम्बत इति निश्चीयते । जलचन्द्रादिदृष्टान्तोऽपि भेदमेव निश्चिनोति अनुस्यूतत्वेना. दृश्यत्वात् भिन्नदेशत्वात् भिन्न देशतया भिन्नाधिकरणत्वेन दृश्यत्वाच्च । अतः एकका प्रतिबिम्ब दूसरे में हो सकता है। किन्तु प्रस्तुत प्रसंग में ब्रह्म चक्षु से ग्राह्य नही है, अमूर्त है, रूपर हित है, विश्वव्यापी है तथा मन एक जगह है और ब्रह्म दूसरी जगह है यह कहना संभव नही अतः मन में ब्रह्म का प्रतिबिम्ब संभव नही । मन अविद्या का कार्य है, जडहै, इन्द्रिय है तथा ब्रह्म में ही स्थित है अतः उसे ब्रह्म के प्रतिबिम्ब से युक्त नही माना जा सकता । यदि मन में ब्रमका प्रतिबिम्ब होता है तो चक्षु, वाक्, आदि इन्द्रियों एवं अवयवों में भी ब्रह्म का प्रतिबिम्ब अवश्य होगा - तब तो एक ही शरीर में बहुत से जीव होंगे, उन सब के प्रेरणा करने पर या तो शरीर निष्क्रिय होगा या टूट जायगा । अतः मनमें ब्रह्म का प्रतिबिम्ब मानना उचित नहीं है । यहां चन्द्र और जल में प्रतिबिम्ब का दृष्टान्त भी भेद का ही समर्थक है - चन्द्र और उसका प्रतिबिम्ब ये अभिन्न दिखाई नही देते, भिन्न स्थानों में तथा भिन्न आधारों में दिखाई देते हैं -- चन्द्र तो ऊपर आकाश में वायुमण्डल में स्थित है तथा प्रतिबिम्ब नीचे जमीनपर पानी में स्थित है। बिम्ब और प्रतिबिम्ब
१ वस्तुषु । २ तदस्यास्तीति मत्वर्थीयवत् प्रत्ययः । ३ उन्मथनं प्राप्येत । ४ प्रतिशरीरम् आत्मभेदमेव । ५ अभिन्नतया । ६ जलचन्द्रादिकस्य ।
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