________________
-७६ ]
न्यायमतोपसंहारः
२४७
I
अथ व्याप्तिबल मवलम्ब्य परस्यानिष्टापादनं तर्क इति चेत् स च उभयप्रमाणप्रसिद्धव्याप्तिकः अन्यतरप्रमाणप्रसिद्धव्याप्तिको वा । न तावदाद्यः पक्षः तथा चेत् तस्य तर्कत्वासंभवात् । तथा हि । वीतस्तर्को न भवति उभयप्रमाणप्रसिद्ध व्याप्तिकत्वात् धूमानुमानवत् । तथा विवादाध्यासितं प्रमाणमेव उभयप्रमाणप्रसिद्धव्याप्तिकत्वात् धूमानुमानवत् इति च । अथ द्वितीयः पक्षः कक्षीक्रियते तर्हि वादिप्रमाणप्रसिद्धव्याप्तिको वा प्रतिवादिप्रमाणप्रसिद्धप्राप्तिको वा । न तावदाद्यः वादिप्रमाणप्रसिद्धव्याप्तिकात् तर्कात् परस्यानिष्टमापादयितुमशक्तेः । कुतः परस्य मूलव्याप्तिप्रतिपत्त्यभावात् । अथ परप्रसिद्धव्याप्त्या परस्यानिष्टापादनं तर्क इति चेत् तदस्माभिरप्यङ्गीक्रियते । तथापि व्याप्तिपूर्वकत्वेनोत्पन्नत्वाद् अनुमानानार्थान्तरम् ।
अथ इदमित्थमेवेत्यवधारणज्ञानं निर्णयपदार्थ इति चेत् तदपि प्रत्यक्षादिप्रमितिरेव, नार्थान्तरम् ।
अथ ' प्रमाणतर्कसाधनोपलम्भः सिद्धान्ताविरुद्धः पञ्चावयवोपपन्नः अनित्य है - यह निगमन है । इन सब अवयवों का वर्णन तो ठीक है किन्तु ये अनुमान के अवयव हैं तथा अनुमान का पहले प्रमाण पदार्थ में अन्तर्भाव होता है । यदि अनुमान के साधन अवयवों को पृथक् पदार्थ मानें तो प्रत्यक्ष प्रमाण के साधन इन्द्रियों को भी पृथक् पदार्थ मानना होगा ।
1
आठवां पदार्थ तर्क है । व्याप्ति के बल से प्रतिवादी को अमान्य तत्त्व सिद्ध करना तर्क है । इसे स्वतन्त्र पदार्थ मानना उचित नही । यदि तर्क में प्रयुक्त व्याप्ति वादी तथा प्रतिवादी दोनों को मान्य हो तो उस का स्वरूप अनुमान से भिन्न नही होगा । यदि यह व्याप्ति सिर्फ वादी को मान्य हो - प्रतिवादी को अमान्य हो-तो उस से प्रतिवादी को अमान्य तत्त्व सिद्ध नही होगा । तब व्याप्ति की सत्यता ही वाद का विषय होगा । प्रतिवादी को मान्य व्याप्ति से कोई तत्त्व सिद्ध करना तर्क माना जाय तो यह भी अनुमान से भिन्न नही होगा । अतः तर्क स्वतन्त्र पदार्थ नही है । नौवां पदार्थ निर्णय है । यह तत्त्व इसी प्रकार है ऐसे निश्चित ज्ञान को निर्णय कहते हैं । यह प्रमाणों से प्राप्त ज्ञान से भिन्न नही । दसवां पदार्थ वाद है - ' प्रमाण और तर्क के साधनों से, सिद्धान्त
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org