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-७७ ] मीमांसादर्शनविचारः
२५३ वस्तुस्वरूपशाः। तदुक्तहेतोरालोकेन व्यभिचारात् । तमोद्रव्यस्य प्रमाणप्रसिद्धत्वाञ्च । तथा हि । तमो धर्मि द्रव्यं भवतीति साध्यो धर्मः रूपित्वात् पटादिवदिति । ननु तमसो रूपित्वमसिद्धमिति चेन्न । तमो रूपी कृष्णत्वे. नावभासमानत्वात् गुणाद्यन्यत्वे सति चाक्षुषत्वाच्च कजलादिवदिति प्रमाणसद्भावात् । ननु तमसचाक्षुषत्वमसिद्धमिति चेन। तमश्चाक्षुषं चक्षुरिन्द्रियेणैव वेद्यत्वात् अन्येषां प्रत्यक्षत्वेऽपि जात्यन्धस्याप्रत्यक्षत्वात् चण्डातपवदिति तमसश्चाक्षुषत्वसिद्धेः। तथा तमो धर्मि द्रव्यं भवतीति साध्यं शीतस्पर्शवत्त्वात् जलादिवदिति च । ननु तमसः शीतस्पर्शवत्वमप्यसिद्धमिति चेन्न। तमः शीतस्पर्शवत् उद्रिक्तपित्तप्रशामकत्वात् चन्दनादिवदिति प्रमाणसद्भावात्। ननु तमसः उद्रिक्तपित्तप्रशामकत्वमसिद्धमिति चेन्न। पित्तोद्रिक्तानामन्धकारावस्थाने पित्तप्रशान्तिदर्शनात वैद्यशास्त्रेऽपि तथा प्रतिपादनाच्च । इति तमसो द्रव्यत्वं सेषिध्यते। तथा छायाया अपि द्रव्यत्वं बोभूयत एव कुतः तस्या अपि तमोमेदत्वादुक्तप्रकारेणैव तत्रापि रूपित्वस्पर्शवत्वस्य समर्थयितुं शक्यत्वात् । ततो न भाभावस्तमः भासा सहावस्थितत्वात् पटादिवत् । नायमसिद्धो हेतुः
___ अन्धकार का अस्तित्व प्रकारान्तर से भी सिद्ध होता है। अन्धकार द्रव्य है क्यों कि वस्त्र आदि के समान यह भी रूप गुण से (कृष्ण वर्ण से ) युक्त है। काजल के समान अन्धकार भी चक्षु द्वारा ज्ञात होता है अतः अन्धकार कृष्ण वर्ण से-रूप गुण से युक्त है। जन्मान्ध को धूप नही दिखाई देती उसी प्रकार अन्धकार भी दिखाई नहीं देता। धूप के समान अन्धकार का भी चक्षु से प्रत्यक्ष ज्ञान होता है अतः वह रूप गुण से युक्त द्रव्य है । दूसरे, अन्धकार जल आदि के समान शीतल स्पर्श से भी युक्त है। पित्त के शमन के लिए अन्धकार उपयुक्त है अतः उस का शीतल होना स्पष्ट है । शीत स्पर्श गुण से युक्त होना भी अन्धकार के द्रव्य होने का स्पष्ट गमक है । छाया अन्धकार का ही एक प्रकार है। उस में भी रूप तथा स्पर्श गुण उपर्युक्त प्रकार से पाये जाते हैं। मन्द प्रकाश के समय प्रकाश तथा अन्धकार दोनों साथसाथ दिखाई देते
१ आलोकस्य आलोकनिरपेक्षतया चाक्षुषत्वेपि भाऽभावाऽभावः। २ गुणादीनां चाक्षुषत्वेऽपि रूपित्वाभावः अत उक्तं गुणान्यत्वे सतीति ।
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