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-८८] बौद्धदर्शनविचारः
२९३ ज्ञानं प्रपौत्रेण तत्र प्रवर्तनमित्यादिवत् चित्क्षणानां संस्कारक्षणानामप्यन्योन्यप्रमितार्थापरिज्ञानात् कथं तत् सर्व भूयोदर्शनादिकमेकानुसंधानगोचरत्वेन जाघटयते। तस्मादात्मानोऽक्षणिकाः भूयोदर्शनाद् व्याप्तिग्रहणस्मरणानुमानप्रवर्तनादिष्वनुसंधातृत्वात् व्यतिरेके' चपलादि दित्यात्मादीनामक्षणिकत्वसिद्धिः। [ ८८. पञ्चस्कन्धविचारः।] __ अथ मतम्-रूपवेदनाविज्ञानसंज्ञासंस्कारा इति पञ्च स्कन्धाः संचितालम्बनाः पञ्चविज्ञानकायाः पञ्चेन्द्रियज्ञानानि । तत्र रूपरसगन्धस्पर्शपरमाणवः सजातीयविजातीयव्यावृत्ताः परस्परमसंबद्धाः रूपस्कन्धाः तेषामसंबद्धत्वं कुत इति चेत्
एकदेशेन संबन्धे परमाणोः षडंशता।
सर्वात्मनाभिसंबन्धे पिण्डः स्यादणुमात्रकः॥ इति वचनात् । अत एवावयविद्रव्यमपि न जाघटयते । तथा हि। यग्रहे रखे, पुत्र उस व्याप्ति से अनुमान करे, पोता उस से इष्ट के साधन को जाने और पडपोता अनुसार प्रवृत्ति करे-क्या यह सम्भव है ? यदि पिता
और पुत्र के समान आत्मा के दो क्षणों में भी भिन्नता हो तो उपर्युक्त उदाहरण के समान किसी आत्मा के लिए अनुमान का प्रयोग सम्भव नही होगा । अतः अनुमान के अस्तित्व से ही आत्मा का क्षणिक न होना सिद्ध होता है।
८८. पञ्च स्कन्धोंका विचार–बौद्ध मत में रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा तथा संस्कार ये पांच स्कन्ध माने हैं। रूप, रस, गन्ध तथा स्पर्श के परमाणु रूपस्कन्ध हैं, ये परस्पर सम्बन्ध रहित होते हैं-सजातीय या विजातीय परमाणु परस्पर सम्बद्ध नही होते। उन में सम्बन्ध न मानने का कारण यह है कि- 'यदि दो परमाणु एक भाग में सम्बन्ध होते हैं तो परमाणु के भी छह भाग मानने पडेंगे तथा यदि परमाणु पूर्ण रूप से सम्बद्ध होते हैं तो दोनों का एकत्रित पिण्ड भी एक परमाणु जितना ही होगा ।' अतः सब परमाणु सम्बन्ध रहित हैं। इसी लिए
१ ये अक्षणिका न भवन्ति ते भूयोदर्शनाद् व्याप्तिग्रहणस्मरणानुमानप्रवर्तनादिध्वनुसंधातारो न भवन्ति ।
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