Book Title: Vishwatattvaprakash
Author(s): Bhavsen Traivaidya, Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Gulabchand Hirachand Doshi

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Page 467
________________ ३३४ विश्वतत्त्वप्रकाशः [-१४७ पृष्ठ १४७----उर्णनाभ इवांशूनाम् इत्यादि श्लोक प्रभानन्द्र तथा अभयदेवने भी उद्धृत किया है । इस का मूल स्थान ज्ञात नहीं हुआ। इस से मिलता जुलता पद्य मुण्डकोपनिषत् में मिलता है। ऐसे वचनों को देख कर ही वेदान्त के विशिष्टाद्वैत तथा द्वैत सम्प्रदाय भी जगत् को सत् मानते हैं। पृष्ठ १५२-वेदान्तदर्शन में ब्रह्म के स्वरूप को प्रमाण का विषय नही माना है। प्रमाण तथा प्रमेय का सम्बन्ध अविद्या पर आश्रित है यह उन का कथन है | इसी लिए अनुमान को प्रमाण मान कर वे कोई तात्त्विक चर्चा नही करते । अनुमान को वे वहीं तक पमाण मानते हैं जहां तक वह श्रुतिउपनिषद्वाक्यों के अनुकूल होता है। पृष्ठ १५५ -नित्यानित्यवस्तुविवेक आदि साधनों का उल्लेख शंकराचार्य ने ब्रह्मसूत्रभाष्य के प्रथमसूत्र की चर्चा में ही किया है। पृष्ठ १६३-जीवों की संख्या बहुत है इस का संक्षिप्त और स्पष्ट तार्किक निर्देश सांख्यकारिका में मिलता है | अद्वैतविरोधी वादियों ने बहुधा उन्हीं तकों को प्रस्तुत किया है। यदि सब जीव ब्रह्म के अंश है तो सब जीवों के हित-अहित-सुख दुःखों से ब्रह्म संयुक्त होगा यह आपत्ति ब्रह्मसूत्र में भी उपस्थित की गई है। इस का उत्तर देते समय वहां एक प्रकार से ब्रह्म और जीवों में भेद को स्वीकार भी किया है। किन्तु यह भेद व्यावहारिक-अविद्याकल्पित है, वास्तविक नही यह वेदान्तियों का कथन है । १) सन्मतिटीका पृ. ७१५; प्रमेयकमलमार्तण्ड पृ. ६५। २) यथोर्णनाभिः सृजते गृह्णते च यथा पृथिव्यामोषधयः सम्भवन्ति । यथा सतः पुरुषात् केशलोमानि तथाक्षरात् सम्भवतीह विश्वम् ।।१।१७ ३) ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्य प्रारम्भ-तमेतम. विद्याख्यम् आत्मान्नात्मनोरितरेतराध्यासं पुरस्कृत्य सर्वे प्रमाणप्रमेयव्यवहाराः लौकिकाः वैदिकाश्च प्रवृत्ताः सर्वाणि च शास्त्राणि विधिप्रतिषेधमोक्षपराणि । ४) जननमरणकरणानां प्रतिनियममादयुगपत्प्रवृत्तेश्च। पुरुषबहुत्वं सिद्धं त्रैगुण्यविपर्ययाच्चैव ।। १८॥ ५) सूत्र २।११२१ इतरव्यपदेशात् हिताकरणादिदोषप्रसक्तिः । अधिकं तु भेदनिर्देशात् ॥ २२॥ ६) ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्य २१।२२ अविद्याप्रत्युपस्थापितनामरूपकृतकार्यकारणसंघातोपाध्यविवेककृता हि भ्रान्तिः हिताकरणादिलक्षणः संसारः न तु परमार्थतः अस्ति इत्यसकृदवोचाम । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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