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विश्वतत्त्वप्रकाशः
[ ८५
स्वयूथ्यान् प्रति । तस्मात् सांख्योक्तप्रकारेणापि पदार्थानां याथात्म्यानु
पपत्तेः
रूपैः सप्तभिरेवंर बध्नात्यात्मानमात्मना र प्रकृतिः । सैव च पुरुषस्यार्थ विमोक्ष' यत्येकरूपेण ॥
वत्सविवृद्धिनिमित्तं क्षीरस्य यथा प्रवृत्तिरशस्य । पुरुषविमोक्षनिमित्तं प्रवर्तते तद्वदव्यक्तम् ॥
इत्यादिकं कथं शोभते ।
[ ८५ सांख्यसंमता मुक्तिप्रक्रिया । ]
ननु,
( सांख्यकारिका ६३ )
दुःखत्रयाभिघाताजिज्ञासा तदपघातके हेतौ । दृष्टे सापार्था चेन्नैकान्ता 'त्यन्ततोऽभावात् ॥ दृष्टवदानुभविकः स विशुद्धिक्षयातिशययुक्तः । तद्विपरीतः श्रेयान् व्यक्ताव्यक्तज्ञविज्ञानात् ॥ ( सांख्यकारिका १, २ ) एतयोर्व्याख्या - दुःखत्रयाभिघातात्- आध्यात्मिकमाधिभौतिकमाधिदैविकअनुचित है । इसीलिए ' सात रूपों से प्रकृति अपने आप को बद्ध करती है तथा पुरुष के लिए वह एक रूप से अपने आपको मुक्त करती है ' यह कथन तथा ' जिस तरह अचेतन दूध बछडे की वृद्धि का कारण होता है उसी तरह अचेतन अव्यक्त ( प्रकृति ) पुरुष के मोक्ष के लिए प्रवृत्त होती है' यह कथन निराधार सिद्ध होता है ।
( सांख्यकारिका ५७ )
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८४. सांख्योंकी मुक्ति प्रक्रिया – अब सांख्य मत की मुक्ति की प्रक्रिया का विचार करते हैं । उन का कथन है कि ' तीन प्रकार के दुःखों से पुरुष पीडित होते हैं अतः उन दुःखों को दूर करने के कारण जानने की इच्छा होती है । लौकिक कारणों से यह जिज्ञासा पूर्ण नही होती । क्योंकि इनसे दुःख की निवृत्ति पूर्णतः या सर्वदा के लिये नही
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१ सांख्यान् । २ महान् अहंकारः पञ्चतन्मात्रा इति सप्त । ३ प्रकृतिर्बध्यते प्रकृति'र्विमुच्यते । ४ सैव च प्रकृतिः पुनः आत्मना आत्मानं विमोक्ष्यति किमर्थं पुरुषस्यार्थम् । ४ निराकृता । ५ नियमो न । ६ यज्ञे हिंसोक्तत्वात् ।
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