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विश्वतत्त्वप्रकाशः
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[७७. भाट्टमतविचारे तमोद्रव्यसमर्थनम् । ]
___ अथ मतं पृथिव्यप्तेजोवायुदिक्कालाकाशात्मन:शब्दतमासीत्येकादशैव पदार्थाः। तदाधितगुणकर्मसामान्यादीनां कथंचिद् मेदामेदसद्भावेन तादात्म्यसंभवान्न पदार्थान्तरत्वमित्येवं पदार्थयाथात्म्यज्ञानात् कर्मक्षयो भवतीति भाट्टाः प्रत्यपीपदन् ।
तेऽप्यतत्त्वशा एव। कुतः पृथिव्यादिनवपदार्थानां तदुक्तप्रकारेण याथात्म्यप्रतिपत्तरसंभवस्य वैशेषिकपदार्थविचारे प्रतिपादितत्वात् । शब्दद्रव्यस्य नित्यत्वसर्वगतत्वाभावत्वमपि वेदस्यापौरुषेयत्वविचारे प्रतिपादितमिति नेह प्रतन्यते। केवलं तमोद्रव्यमेव तदुक्तप्रकारेणास्माभिरप्यङ्गीक्रियते।
ननु प्रकाशाभावव्यतिरेकेणापरस्य तमोद्रव्यस्याभावात् तत् कथं युष्माभिरप्यङ्गीक्रियते। तथा हि। भाऽभावस्तमः आलोकनिरपेक्षतया चाक्षुषत्वात् प्रदीपप्रध्वंसवत् इति नैयायिकादयः प्रत्यप्राक्षुः । तेऽपि न
७७. भाट्ट मत और तमो द्रव्य-भाट्ट मीमांसकों के मत से पृथिवी, अप, तेज, वायु, दिशा, काल, आकाश, आत्मा, मन, शब्द एवं तम ये ग्यारह पदार्थ हैं-गुण, कर्म सामान्य आदि इन्हीं पर आश्रित हैं अतः स्वतन्त्र पदार्थ नही हैं। इन ग्यारह पदार्थों के यथायोग्य ज्ञान से कर्मों का क्षय होता है।
मीमांसकों का यह मत हमें मान्य नही। इन के ग्यारह पदार्थों में से पहले नौ पदार्थों का विचार तो वैशेषिक दर्शन के प्रसंग में हुआ ही है। शब्द के स्वरूप का विचार भी वेदप्रामाण्य की चर्चा में हो गया है । इन का तम द्रव्य का स्वरूप ही हमें स्वीकार है।
इस विषय में नैयायिकों का आक्षेप है - प्रकाश का अभाव ही तम ( अन्धकार ) है - यह कोई स्वतन्त्र पदार्थ नही है। प्रकाश के न होने पर चक्षु द्वारा अन्धकार का ग्रहण होता है। किन्तु यह आक्षेप योग्य नही । प्रकाश तथा अन्धकार दोनों का ज्ञान स्वतन्त्र रूप से होता है। प्रकाश के ज्ञान के लिए किसी दूसरे प्रकाश की जरूरत नही होती। इसी प्रकार अन्धकार का ज्ञान भी प्रकाश पर अवलंबित नही होता।
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