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विश्वतत्त्वप्रकाशः
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तस्मात् ' सालोक्यमुक्तिर्भवति । तपःस्वाध्यायानुष्ठानं क्रियायोगः । तत्रोन्मादकामादिव्यपोहार्थम् आध्यात्मिकादिदुःखसहिष्णुत्वं तपः । प्रशान्तमन्त्रस्येश्वरवाचिनोऽभ्यासः स्वाध्यायः । तदुभयमपि क्लेशकर्मपरिक्षयाय समाधिलाभार्थ चानुष्ठेयम् । तस्मात् क्रियायोगात् सारूप्यं सामीप्यं वा मुक्तिर्भवति । विदितपदपदार्थस्येश्वरप्रणिधानं ज्ञानयोगः परमेश्वरतत्त्वस्य प्रबन्धेनानुचिन्तनं पर्यालोचनमीश्वरप्रणिधानम् । तस्य योगस्य यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि । तत्र देशकालावस्थाभिरनियताः पुरुषस्य शुद्धिवृद्धि हेतवो यमाः अहिंसाब्रह्मचर्या - स्तेयादयः । देशकालावस्थापेक्षिणः पुण्यहेतवः क्रियाविशेषाः नियमाः देवार्चनप्रदक्षिणा संध्योपासनजपादयः । योगकर्मविरोधिक्लेशजयार्थचरणबन्ध आसनं पद्मकस्वस्तिकादि । कोष्ठयस्य वायोः गतिच्छेदः प्राणायामः रेचकपूरककुम्भकप्रकारः शनैः शनैरभ्यसनीयः । समाधिप्रत्यनीकेभ्यः ४ समन्तात् स्वान्तस्य व्यावर्तनं प्रत्याहारः । चित्तस्य देशबन्धो धारणा ।
इस से सारूप्य या सामीप्य मुक्ति मिलती है । इन में उन्माद, कामविकार आदि दूर करने के लिए विविध दुःख सहने को तप कहा है तथा ईश्वरवाचक शान्त मन्त्र के अभ्यास को स्वाध्याय कहा है । इन से क्लेश और कर्म का क्षय होकर समाधि प्राप्त होती है | पद और पदार्थ को समझ कर ईश्वर का चिन्तन करना ज्ञानयोग है । इस योग के आठ अंग हैं -- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि । पुरुष की शुद्धता बढाने के लिए देश तथा काल की मर्यादा को न रखते हुए अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अचौर्य आदि व्रत धारण किये जाते हैं - ये ही यम हैं । पुण्य प्राप्ति के लिए विशिष्ट प्रदेश तथा समय में मर्यादित क्रियाओं को नियम कहा है - देवपूजा, प्रदक्षिणा, सन्ध्याउपासना, जप आदि इस के प्रकार हैं। योगक्रिया में बाधक थकान को जीतने के लिए अवयवों का विशिष्ट आकार बनाना आसन कहलाता है - पद्मासन, स्वस्तिकासन आदि इसके प्रकार हैं । कोठे के वायु की T गति रोकना प्राणायाम है - इसके तीन प्रकार हैं रेचक, पूरक तथा कुम्भक । इन का धीरे धीरे अभ्यास करना होता है । मन को समाधि के
१ आलोकस्य भावः आलोक्यम् आलोक्येन सह वर्तमाना सालोक्या । २ समानरूपस्य भावः सारूप्यम् । ३ मर्यादारहिताः । ४ क्रोधादिभ्यः ।
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