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पक्षप्रतिपक्षपरिग्रहो वादः । यथोक्तोपपन्नच्छलजातिनिग्रहस्थान साधनो जल्पः । स एव प्रतिपक्षस्थापनाहीनो वितण्डा । ' इत्येतत्त्रयाणां स्वरूपं कथाविचारेण विचारितं द्रष्टव्यम् । 'हेतुलक्षणरहिताः हेतुवदाभासमाना हेत्वाभासाः' असिद्धादयस्ते च कथाविचारे विचारिता द्रष्टव्याः । तेषामपि पृथक् पदार्थत्वे साधर्म्यवैधर्म्याभ्यामुक्त द्वादशविधदृष्टान्तानामपि ' पदार्थत्वं प्रसज्यते । तथा वचनविघातोऽर्थान्तरपरिकल्पनया छलं तत् त्रिविधम् । प्रयुक्ते हेतौ प्रतिपक्षसमीकरणाभिप्रायेण प्रत्यवस्थानं' जातिः सा चतुर्विंशतिप्रकारा। वादिप्रतिवादिनोरन्यतरस्य पराजयनिमित्तं निग्रहस्थानं तच्च द्वाविंशतिप्रकारम् ।
इत्येतत् सर्वे कथाविचारे प्रपञ्चितं द्रष्टव्यम् । एतेषामपि पदार्थत्वे लोकशापाकोशासभ्यवचनापदभियोगादीनामपि पदार्थत्वं स्यादित्यतिप्रसज्यते । किं च । संशयादीनां प्रमाणगोचरत्वेन प्रमेयत्वसंभवात् प्रमाणं
विश्वतत्त्वप्रकाशः
का विरोध न करते हुए, पांच अवयवों से युक्त, पक्ष और प्रतिपक्ष का कथन बाद है ' । ग्यारहवां पदार्थ जल्प है - ' यथोचित हल, जाति तथा निग्रहस्थानों का प्रयोग करके होनेवाला विवाद जल्प है ' । 6 जल्प में प्रतिपक्ष की स्थापना को अवसर न दिया जाय तो वही वितण्डा कहलाता है - यह बारहवां पदार्थ माना है । ' जिन में हेतु का लक्षण न हो किन्तु जो हेतु जैसे प्रतीत हों वे हेत्वाभास हैं' - इन्हें तेरहवां पदार्थ माना है । ' दूसरे अर्थ की कल्पना कर के बात काटना छल है जो तीन प्रकार का है' - यह छल चौदहवां पदार्थ माना है । ' हेतु का प्रयोग करने पर प्रतिपक्ष से उसकी समानता बदलाने के लिए विरोध करना जाति है - इस के चौवीस प्रकार हैं - यह पन्द्रहवां पदार्थ माना है । ' वादी या प्रतिवादी के पराजय का कारण निग्रहस्थान होता है - इसके बाईस प्रकार हैं ' - यह सोलहवां पदार्थ माना है ।
वाद से निग्रहस्थान तक इन सातों विषयों का विचार हमने ' कथाविचार ' ग्रन्थ में किया है। यहां द्रष्टव्य इतना है कि इन सब बातों को पदार्थ मानना हो तो बारह प्रकार के दृष्टान्त, शाप,
आक्रोश,
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१ अन्वयव्यतिरेकाणां द्वादश प्रकाराः । २ यथा अनित्यः शब्दः कृतकत्वात् घटवत् इत्युक्ते यथा घटवत् कृतकः शब्दः तथा घटवत् समवायोऽपि भवति ।
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