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-५६] आत्मविभुत्वविचारः
१९३ स्वरूपासिद्धो हेत्वाभासः स्यात् । ननु आत्मा सर्वगतः नित्यत्वादाकाशवदिति चेन्न । हेतोः परमाणुभिर्व्यभिचारात्। अथ तद्व्यवच्छेदार्थममूतत्वे सति नित्यत्वादिति विशेषणमुपादीयत इति चेन्न । तथा आप्यादि. परमाणुगतरूपादिभिर्व्यभिचारात् । तेषाममूर्तत्वे सति नित्यत्वसद्भावेऽपि सर्वगतत्वाभावात् । अथ तद्व्यवच्छेदार्थम् अमूर्तत्वे सति नित्यद्रव्यत्वादिति विशेष्यमुपादीयत इति चेन्न। तत्राप्यमूर्तत्वे सतीति कोर्थः । रूपादिरद्वितत्वे सतीति विवक्षितं सर्वगतत्वे सतीति वा। प्रथमपक्षे मनसा हेतोर्व्यभिचारः स्यात् । द्वितीयपक्षे विशेषणासिद्धो हेत्वाभासः स्यात् । अथ आत्मा सर्वगतः स्पर्शादिरहितत्वात् आकाशवदिति चेन्न । गुणक्रियाभिहेतोय॑भिचारात् । अथ तद्व्यवच्छेदार्थ स्पर्शरहितद्रव्यत्वादित्युच्यत इति चेन्न । घटपटादिकार्यद्रव्याणामुत्पन्नप्रथमसमये स्पर्शादिरहितत्वेन हेतोयभिचारात्। अथ तद्व्यवच्छेदार्थ सदास्पर्शरहितद्रव्यत्वादित्युच्यत है – सर्वगत द्रव्य का आकार अमूर्तत्व है यह कथन भी योग्य नही। इस प्रकार तो सर्वगत होना और अमर्त होना एकार्थक होगा अतः एक को दूसरे का कारण बतलाना व्यर्थ होगा। आत्मा आकाश के समान नित्य है अतः सर्वगत है यह कथन उचित नही। परमाणु नित्य हैं किन्तु सर्वगत नही हैं । आत्मा अमूर्त और नित्य है अतः आकाश के समान सर्वगत है यह कथन भी निरापद नही है - जलादि परमाणओं के रूपादि गुण अमूर्त और नित्य है किन्तु वे सर्वगत नही हैं। आत्मा अमूर्त नित्य द्रव्य है – इस प्रकार सुधार करने से भी यह अनुमान निर्दोष नही होता। मन अमूर्त है किन्तु सर्वगत नही है। आत्मा स्पर्शादि से रहित है अतः आकाश के समान सर्वगत है यह कथन भी सदोष है । गुण और क्रिया भी स्पर्शादि से रहित होती हैं किन्तु सर्व. गत नही होती। आत्मा स्पर्शादिरहित द्रव्य है. यह कहने से भी यह अनुमान निर्दोष नही होता । न्यायमत के अनुसार घट, पट आदि सभी कार्य द्रव्य उत्पत्ति के प्रथम क्षण में स्पर्शादि से रहित ही होते हैं किन्तु
१ परमाणूनां नित्यत्वेऽपि सर्वगतलाभावः। २ मनसो. रूपादिरहितत्वे सति नित्यद्रव्यत्वेऽपि सर्वगतत्वाभावः । वि.त.१३
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