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समवायविचारः
रूपादिवत् संबन्धत्वात् संयोगवत् । तथा समवायः स्वाश्रयविनाशाद् विनश्यति परतन्त्रैकरूपत्वात् आश्रितत्वात् संयोगवदिति समवायस्योत्पतिविनाशवत्त्वसिद्धेरनित्यत्वासिद्धिः। ननु संयोगस्य परतन्त्रैकरूपत्वासिके साधनविकलो दृष्टान्त इति चेन्न । संयोगः परतन्त्रैकरूपः गुणत्वात् आश्रितत्वात् रूपवदिति संयोगस्य परतन्त्रैकरूपत्वसिद्धेः ।
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तथा समवायः सर्वगतो न भवति सकलमूर्तिमद्द्द्रव्यसंयोगरहितत्वात् पटवत् । ननु समवायस्य सकलमूर्तिमद्द्रव्यसंयोगरहितत्वमप्यसिद्धमिति चेन्न । समवायः सकलमूर्ति मद्द्रव्यसंयोगरहितः महापरिमाणानधिकरणत्वात् पटादिवदिति तत्सिद्धेः । अथ समवायस्य मदापरिमाणानधिकरणत्वमप्यसिद्धमिति चेन्न । समवायः महापरिमाणाधिकरणो न भवति अद्रव्यत्वात् आश्रित्त्वात् परतन्त्रैकरूपत्वात् रूपादिवत् संबन्धत्वात् संयोगवदिति महापरिमाणानधिकरणत्वसिद्धेः। तथा समवायः सर्वतो न भवति महापरिमाणानधिकरणत्वात् अद्रव्यत्वात् आश्रितत्वात् परतन्त्रैकरूपत्वात् रूपादिवत् संबन्धत्वात् संयोगवदिति च । तथा समवायः एको न भवति सकलमूर्तिमद्द्रव्यसंयोगरहितत्वात् महापरिमाणानधिकरणत्वात् अद्रव्यत्वात् आश्रितत्वात् परतन्त्रैकरूपत्वात् रूपादिबत् संबन्धत्वात् संयोगवदिति समवायस्य नित्यत्वविभुत्वैकत्वानुपपत्तिरेव स्यात्। ननु सत्तासामान्यस्यः परतन्त्रैकरूपत्वेऽप्यनेकत्वाभावादनैकान्तिको मानना चाहिए क्यों कि समवाय आश्रित तथा परतन्त्र माना गया है । जिस तरह संयोग सम्बन्ध है, आश्रित है तथा परतन्त्र है उसी प्रकार समवाय भी है अतः संयोग के समान समवाय भी अनित्य – उत्पत्तिविनाशयुक्त सिद्ध होता है ।
समवाय सर्वगत भी नही है क्यों कि वह सब मूर्त द्रव्यों के संयोग से रहित है - महान परिमाण का नही है । समवाय रूप आदि के समान आश्रित, परतन्त्र तथा अद्रव्य है ( द्रव्य नही है ) तथा वह संयोग के समान एक सम्बन्ध है अतः वह महान परिमाण का सर्वगत नही है । इन्हीं कारणों से समवाय का एक होना भी संभव नही है । सत्तासामान्य ( अस्तित्व ) सब पदार्थों में है अतः वह परतन्त्र होने पर भीं एक है - अनेक नही - यह कथन भी अनुचित है । सामान्य स्वयं द्रव्य नही है, परतन्त्र, आश्रित, सब मूर्त द्रव्यों के संयोग से रहित एवं
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