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प्रस्तावना
नाम दिया जाता है। अतः किस ग्रन्थ के कर्ता कौन से चारुकीर्ति हैं तथा उन का समय क्या है यह निश्चित करना कठिन है। प्रस्तुन दोनों टीकाएं अप्रकाशित हैं।
५८. अभयचन्द्र-अकलंकदेव के लघीयत्रय के मूल श्लोकों पर अभयचन्द्र का स्थाद्वादभूषण नामक टीका प्रकाशित हो चुकी है । अभयचन्द्र ने अपना विशेष परिचय नही दिया है। केवल इतना निश्चित है कि वे प्रभाचन्द्र के बाद हुए हैं। तेरहवीं सदी में विद्यमान आचार्य बालचन्द्र (समयसार आदि के कन्नड टीकाकार ) के गुरु का नाम अभयचन्द्र था तथा उन के एक शिष्य भी इसी नाम के थे। स्याद्वादभूषण के कर्ता इन में से कोई थे अथवा इन के बाद के कोई आचार्य थे यह निश्चित करना कठिन है ।
५९. आशाधर---तेरहवीं सदी के पूर्वार्ध में आशाधर ने विविध विषयों पर ग्रन्थरचना की। बघेरवाल जाति के श्रेष्ठी सल्लक्षण उन के पिता थे। उन का जन्म मांडलगढ़ में तथा विद्याध्ययन धारा में हुआ था। नलकच्छपुर(नालछा) में उन्हों ने लेखनकार्य किया। मालवा के अर्जुनवर्मा आदि राजाओं तथा बिल्हण, मदन कीर्ति आदि पण्डितों द्वारा वे सन्मानित हुए थे। उन की ज्ञात तिथियां सन १२२८ से १२४३ तक हैं।..
__आशाधर ने अनगारधर्मामृत की प्रशस्ति में अपने प्रमेयरत्नाकर नामक ग्रन्थ का वर्णन इस प्रकार किया है ( श्लोक १०) -
स्याद्वादविद्या विशदप्रसादः प्रमेयरत्नाकरनामधेयः ।
तर्कप्रबन्धो निरवद्यपद्यपीयूष गे वहति स्म यस्मात् ।।
इस में इस ग्रन्थ को स्याद्वाद विद्या का विशद प्रसाद तथा निर्दोष पद्यों का अमृततुल्य प्रवाहरूप तर्कप्रबन्ध कहा है । दुर्भाग्य से यह ग्रन्थ अभी उपलब्ध नही हुआ है।
१) प्रकाशमूचना अकलंक के परिचय में दी है। २) जैन शिलालेख संग्रह भा. ३ लेखांक ५२४ ।
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