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विश्वतत्त्वप्रकाशः
तथा वंशीधर गुप्त-रायचन्द्र जैनशास्त्रमाला, १९१०, बम्बई; ३ मूल श्लोकों का हिंदी पद्यानुवाद-त्रिलोकचंद पाटनी-१९१८,केकडी अजमेर ; ४ आर्हतप्रभाकर कार्यालय, पूना १९२५, ५ प्र. भैरवदास जेठमल, बीकानेर १९२६; गुजराती अनुवाद - प्र. हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९३०, ७ मूल व इंग्लिश टिप्पण - आनन्दशंकर ध्रुव -- बॉम्बे संस्कृत सीरीन, १९३३, बम्बई; ८ मूल व हिन्दी प्रस्तावना तथा टिप्पण जगदीशचन्द्र जैन-- रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला, १९३५, बम्बई; संपूर्ण इंग्लिश अनुवाद, एफ. डब्ल्यू. टोमस, बर्लिन १९६०]
स्याद्वादमंजरी पर विजय विमल ( उपनाम वानरर्षि) ने टीका लिखी है।
६५. सोमतिलक-हरिभद्र के षड्दर्शनसमुच्चय पर सोमतिलक ने सं. १३९२ ( = सन १३३६) में टीका लिखी थी। कुमारपालप्रबन्ध, वीरकल्प (सं. १३८९ ), तथा लघुस्तव टीका (स. १३९७) तथा शीलोपदेशमालाटीका ये उन के अन्य ग्रन्थ हैं । वे रुद्रपल्लीय गच्छ के आचार्य संघतिलक के शिष्य थे।
६६. राजशेखर-ये हर्ष पुरीय मलधारीगच्छ के श्रीतिलक के शिष्य ये। तर्कविषय पर इन के चार ग्रन्थ हैं जिन में दो स्वतंत्र तथा दो टीकात्मक हैं। उन की स्याद्वादकलिका में ४१ श्लोकों में स्याद्वाद का संक्षिप्त वर्णन है। षट्दर्शननसमुच्चय में १८० श्लोकों में छह दर्शनों का संक्षिप्त विचार है। श्रीधर को न्यायकन्दली पर उन्हों ने सं.१३८५में ४००० श्लोकों जितने विस्तार की टीका लिखी है। रत्नप्रभ की रत्नाकरावतारिका की पंजिका यह उन की चौथी कृति है। प्रबन्धकोष, कौतुककथा तथा द्वय श्रयवृत्ति ये उन की अन्य रचनाएं हैं। राजशेखर को ज्ञात तिथियां सन १३२८ से १३४८ तक हैं।
[प्रकाशन--१ स्याद्वादकलिका-प्र. हीरालाल हंसराज, जामनगर; २ षड्दर्शनसमुच्चय-यशोविजय ग्रंथमाला, बनारस, १९०९ तथा आगमोदय समिति, सूरत, १९१८ ]
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