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-२१] ईश्वरनिरासः
४९ अचेतनोपादानत्वाभावेन भागासिद्धत्वात् । अथ आत्मनः अचेतनत्वात् बुद्ध्यादीनामचेतनोपादानत्वमस्तीति चेन्न । आत्मा चेतनः, मातृत्वात् भोक्तृत्वाच्च व्यतिरेके पटादिवदिति' आत्मनश्चेतनत्वसिद्धेः। चेतयति संवेदयतीति चेतन आत्मा इति व्युत्पत्तेश्च। तस्मात् बुद्ध्यादिषु अचेतनोपादानत्वाभावाद् भागासिद्धत्वं हेतोर्निश्चीयते। अथ बुद्ध्यादिअध्वंसव्यतिरिक्तानां पक्षीकरणान्नायं दोष इति चेन्न । बुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नधर्माधर्मादीनां सकलकार्यप्रध्वंसस्यापीश्वरकर्तकत्वाभावप्रसंगात्।
____ अथ तनुकरणभुवनादिकं, प्रयत्नजं संनिवेशविशिष्टत्वात् रचनाविशेषविशिष्टत्वात् पटादिवदिति चेत् । तत्र संनिवेशविशिष्टत्वं नाम परिमाणविशेषविशिष्टत्वम् अवयवित्वं वा । आद्यपक्षे परमाण्वाकाशादिना व्यभिचारः। तेषां परिमाणविशेषविशिष्टत्वेऽपि प्रयत्नजत्वाभावात् । से नहीं होते। अतः अचेतन उपादान होना और कार्य होना इनमें नियत सम्बन्ध नहीं है। बुद्धि, सुख, दुःख आदि का उपादान आत्मा अचेन है यह कहना भी ठीक नहीं। आत्मा ज्ञाता और भोक्ता है अतः वह अचेतन नहीं हो सकता । वस्त्र आदि ज्ञाता और भोक्ता नहीं होते वेही अचेतन हो सकते हैं । आत्मा को चेतन इसीलिये कहा जाता है कि वह जानता है - संवेदन करता है। जिन का उपादान अचेतन है वे पुरुषकृत हैं ऐसा मानें तो बुद्धि, सुख, दुःख आदि को तथा सभी विनाशों को पुरुपकृत नहीं मान सकेंगे। ___ पृथ्वी आदि विशिष्ट आकार के हैं तथा उनकी रचना विशिष्ट है अतः वे प्रयत्न से निर्मित है यह अनुमान भी योग्य नहीं। परमाणु और आकाश में भी विशिष्ट आकार होता है किन्तु न्यायदर्शन में उन्हें प्रयत्न से निर्मित नहीं माना है। विशिष्ट आकार का तात्पर्य मध्यम आकार मानें तो भी यह अनुमान निदोर नहीं होता। गुण, कर्म तथा
१ अत एवं वसुं शक्यते यत् अवेतनोगदानकारगकं तत् :सकर्तृकं चेतनोगदानकारणकमनि सक कम् । २ यश्चतनो न भवति स ज्ञाता न भवति यथा पटः। ३ परभागुबु असावल्यारिमाणमस्ति आकाशे मइत् परिमाणमस्ति । वि.त.४
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