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विश्वतत्त्वप्रकाशः
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त्वात् । ततो नानुमानं प्रपञ्चसत्यत्वस्य बाधकमस्ति । ननु 'नेह नानास्ति किंचन' (बृहदारण्यक उपनिषत् ४ -४ -१९ ) इत्याद्यागमो बाधकः प्रपञ्चसत्यत्वस्येति चेन्न । तदागमप्रामाण्याभावस्य प्रागेव प्रतिपादितत्वात् । [ ४६. ब्रह्मसाक्षात्कारविचारः ।]
ननु ब्रह्मस्वरूप साक्षात्कारो बाधको भविष्यतीति चेन्न । स साक्षात्कारः स्वरूपस्य जायते प्रमातॄणां वा । स्वरूपस्य जायते चेत् स च स्वयंप्रकाशरूपो वा स्यात् अन्तःकरणवृत्तिरूपो वा । अत्र आद्यपक्षे स च ब्रह्मसाक्षात्कारो न जायते स्वरूपे स्वप्रकाशस्य सर्वदा विद्यमानत्वात् । तथाविध' ब्रह्मसाक्षात्कारात् प्रपञ्चबाध्यत्वाङ्गीकारे प्रपञ्चो न कदाचित् प्रतिभासते अनाद्यनन्तबाधितत्वात् खपुष्पवदिति प्रपञ्चस्य कदाचनापि प्रतिमानो न स्यात् । द्वितीयपक्षोऽप्यनुपपन्न एव । स्वरूपस्यान्तःकरणरहितत्वेन अन्तःकरण वृत्ति रूप साक्षात्कारोत्पत्तेरघटनात् ।
सिद्ध नही होना । तात्पर्य अनुमान से प्रपंच बाधित नही होता ।
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इस जगत में नाना कुछ नही है | आदि उपनिषद्वचन भी प्रपंच को बाधित नही कर सकते क्यों कि ये वचन प्रमाण नही हैं यह हम ने पहले ही स्पष्ट किया है ।
४६. ब्रह्म के साक्षात्कार का विचार - ब्रह्म साक्षात्कार प्रपंच का बाधक है इस कथन का अब विचार करते हैं । प्रश्न होता है कि यह साक्षात्कार ब्रह्म को होता है या प्रमाताओं का होता है ? यदि ब्रह्म को ही साक्षात्कार होता है तो स्वयं होता है या अन्तःकरण के द्वारा होता है ? ब्रह्म को सर्वदा स्वयंप्रकाशरूप माना है अतः यदि ब्रह्मसाक्षात्कार स्वयंप्रकाशरूप है तो वह सर्वदा विद्यमान होगा - फिर उस से किसी समय प्रपंच का बाघ होना कैसे संभव है ? प्रपंच का प्रतिभास होना ही ऐसी स्थिति में संभव नही होगा । ब्रह्म के स्वरूप में अन्तःकरण का कोई स्थान नही है अतः ब्रह्म को अन्तःकरण
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१ प्रपञ्चस्य । २ अस्मदादीनाम् । ३ ब्रम्हस्वरूपे । ४ स्वयंप्रकाशरूप प्रकार । ५ अनाद्यनन्तेन स्वयंप्रकाशरूपेण ब्रम्हसाक्षात्काररूपेण प्रपञ्च स्य ६ अन्तःकरणे वृत्तिः सैव रूपं यस्य ।
बाधितत्वात्
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