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विश्वतत्त्वप्रकाशः
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[ ४२. भ्रान्तिविषयकमतान्तरनिरासः । ]
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ननु' पुरोवर्तिनि शुक्तिस्वरूपं न प्रतिभासते तत्प्रतिभासे रजतार्थिनः पुरोवर्तिनि प्रवृत्त्यसंभवात्, रजतस्वरूपमपि न प्रतिभासते तत्राविद्यमानत्वात् ततश्चात्राख्यातिरेवेति चार्वाकः प्रत्यवतिष्ठते । सोऽप्ययुक्तवादी प्रतीतिविरुद्धवादित्वात् । कुतः । इदं रजतमिति पुरोदेशे चकचकायमानशुक्रभासुररूपविशिष्टवस्तुविषयतया प्रतिभासस्योत्पत्तिदर्शनात् । तदभावे इदं रजतमिति रजतार्थिनः पुरोदेशे प्रवृत्तिर्नोपपद्यते । नेदं रजतमिति प्रतीत्युत्तरकालीन निषेधप्रत्ययोऽपि न जाघटयते । अथ तत् सर्वं मा घटिष्टेति चेन्न । तथा प्रतिभासप्रवृत्तिनिषेधप्रत्ययानां सकलजनसाक्षिकत्वेन प्रतीयमानत्वात् । ततश्चार्वाकपरिकल्पिताख्यातिपक्षोऽपि न श्रेयान् ।
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ननु' मरीचिकाचक्रादौ प्रसिद्धमेव जलादिकं प्रतिभासते । तर्हि सर्वेऽपि तथा कुतो न पश्येयुरिति चेत् अन्ये तु स्वेषां तदुपलब्धिसामथ्र्यभावान्न पश्यन्ति । तर्हि यः पश्यति तस्य तद्देशोपसर्पणे तत्प्राप्तिः
४२. भ्रान्तिविषयक अन्य मतों का निरास - अब भ्रान्ति के विषय में चार्वाक मत का विचार करते हैं । इन के अनुसार सीप में चांदी का ज्ञान वास्तव में विद्यमान ही नहीं होता । यह सींप का ज्ञान नहीं हैं क्यों कि सींप के ज्ञान से चांदी को उठाने की इच्छा होना सम्भव नही है । यह चांदी का भी ज्ञान नही हो सकता क्यों कि यहां चांदी विद्यमान ही नही है । इस तरह अख्याति ( दोनों प्रकार के ज्ञान का अभाव ) पक्ष ही यहां ठीक है । किन्तु चार्वाकों का यह मत उचित नही । सामने पडी हुई चमकीली सफेद चीज को देख कर यह चांदी है ऐसा ज्ञान होना, उसे उठाने की प्रवृत्ति होना तथा बाद में यह चांदी नही है ऐमा भ्रमनिरास होना – ये सब बातें सब लोगों के अनुभव से सिद्ध हैं। इस प्रत्यक्ष प्रतीति का अभाव कहना अनुचित है ।
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अब भ्रान्ति के विषय में सांख्यों का मत प्रस्तुत करते हैं । इन के मतानुसार मृगजल के रूप में प्रतीत होनेवाला जल वास्तविक रूप में विद्यमान ही होता है । फिर सब लोग उसे क्यों नहीं देख सकते -
१ चार्वाकः । २ सांख्यः अर्थख्याति मंगीकरोति ।
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