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विश्वतत्त्वप्रकाशः
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जितना है तथा इस की रचना सं. १५४५ से ५१ ( १४८८ से ९४) तक हुई थी । इस पर लेखक की स्वकृत टीका भी है । हेतुखण्डन प्रकरण यह उन की दूसरी रचना है ।
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७६. सिद्धान्तसार — ये तपागच्छ के इन्द्रनंदि गणी के शिष्य थे । इन्हों ने सं. १५७० = सन १५१४ में दर्शनरत्नाकर नामक ग्रंथ लिखा था । इस का विस्तार कोई २०००० श्लोकों जितना है ।
७७. शुभचन्द्र – ये मूलसंघ - बलात्कारगण के भट्टारक विजयकीर्ति के शिष्य थे । इन के विविध उल्लेख सन १५१६ से १५५६ तक प्राप्त हुए हैं' । इन के शिष्यवर्ग में त्रिभुवनकोर्ति, क्षेमचन्द्र, सुमतिकीर्ति, श्रीपाल आदि का समावेश होता था । शुभचन्द्र ने तार्किक विषयों पर तीन ग्रंथ लिखे हैं । इन का क्रमशः परिचय इस प्रकार है ।
संशयिवदनविदारण — इस के तीन परिच्छेद हैं तथा इन में क्रमशः केवलियों का भोजन, स्त्रियों की मुक्ति तथा महावीर का गर्भान्तरण इन तीन श्वेताम्बर मान्यताओं का विस्तार से खण्डन है ? | [ प्रकाशन-- हिंदी अनुवाद मात्र - पं. लालाराम, देवकरण जैन ग्रन्थमाला, कलकत्ता, १९२२ ]
हरीभाई
षड्दर्शनप्रमाणप्रमेयानुप्रवेश — इस ग्रन्थ की प्रति का परिचय जैन सिद्धांतभवन, आरा, के प्रशस्तिसंग्रह से प्राप्त होता है । नाम के अनुसार देखने से स्पष्ट होता है कि इस में सांख्य, योग आदि छह दर्शनों के तत्त्वों का संक्षिप्त विचार होगा । पाण्डवपुराण की प्रशस्ति में शुभचन्द्र ने जिस षड्वाद ग्रंथ का उल्लेख किया है वह यही हो सकता है" । ग्रंथ अभी अप्रकाशित है ।
१ ) शुभचन्द्र की गुरुपरम्परा के वृत्तान्त के लिए देखिए भट्टारक सम्प्रदाय (पृ. १५३-१५७) । २) यह मूल ग्रन्थ प्रकाशित नही हुआ है । इस पर लेखक की स्वकृत टीका भी अप्रकाशित है । ३) (पृष्ठ २०-२२) । ४) श्लोक ७९ : ऋता येनांगप्रज्ञप्तिः सर्वांगार्थप्ररूपिका । स्तोत्राणि च पवित्राणि षड्वादा: श्रीजिनेशिनाम् ॥ ५) पं. भुजबलि शास्त्री ने श्रवणबेलगोल के शक १०४५ के शिलालेख में वर्णित शुभचन्द्र की प्रस्तुत ग्रन्थ के कर्ता होने की सम्भावना व्यक्त की है ।
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