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विश्वतत्त्वप्रकाशः
जिनसेन ने उन की प्रशंसा करते हुए बन्ध, मोक्ष तथा उन के कारणों के विषय में विचार करनेवाली उन की उक्तियों का वर्णन किया है
वज्रसूरेविचारिण्यः सहेत्वोर्बन्धमोक्षयोः ।
प्रमाणं धर्मशास्त्राणां प्रवक्तृणामिवोक्तयः ।। धवल कवि के हरिवंश में भी वज्रसूरि के प्रमाणग्रन्थ की प्रशंसा मिलती है
वजसूरि मुणिवरु सुपसिद्धउ । जेण पमाणगंथु किउ चंगउ ।। नवस्तोत्र नामक रचना में वजनन्दि ने जैन सिद्धान्तों का विस्तृत समर्थन किया था ऐसा वर्णन मल्लिषेणप्रशस्ति ( जैन शिलालेखसंग्रह भा. १ पृ. १०३ ) में मिलता है
नवस्तोत्रं तत्र प्रसरति कवीन्द्राः कथमपि प्रणामं वज्रादौ रचयत परं नन्दि निमुनौ । नवस्तोत्रं येन व्यरचि सकलार्हत्प्रवचन
प्रपंचान्तर्भावप्रवणवरसन्दर्भसुभगम् ।। वज्रनन्दि का कोई ग्रन्थ इस समय उपलब्ध नही है । दर्शनसार के उपर्युक्त वर्णनानुसार उनका समय सातवीं सदी का प्रारम्भिक भाग है।
१५. मल्लवादी-कथाओं के अनुसार मल्लवादी की माता का नाम दुर्लभदेवी था तथा उन के मामा आचार्य जिनानन्द थे। वलभीनगर में उन का जन्म हुआ था । आचार्य अजितयशस तथा यक्षदेव उन के बन्धु थे । भगकच्छ ( वर्तमान भडौच ) में बुद्धानन्द नामक बौद्ध आचार्य द्वारा जिनानन्द वाद में पराजित हुए थे। इस के उत्तर में मल्लवादी ने बुद्धानन्द का पराजय कर के वादी यह उपाधि प्राप्त की थी।
मल्लबादी का तार्किक ग्रन्थ द्वादशारनयचक्र मूलरूप में प्राप्त नही है - उस की सिंह क्षमाश्रमण कृत टीका प्राप्त है । कथा के अनुसार इस ग्रन्थ का प्रथम पद्य ज्ञान प्रवाद पूर्व से प्राप्त हुआ था। यह पद्य इस प्रकार है -
१) भद्रेश्वर की कथावली, प्रभाचन्द्र का प्रभावकचरित, मेस्तुंग का प्रबन्धचिंतामणि, राजशेखर का प्रबन्धकोष आदि में यह कथा मिलती है ।
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