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प्रस्तावना
(द्वितीय) का गज्यकाल सन ८७० से ९०७ तक था। अण्णिगेरे तथा गावरवाड के दो शिलालेखों में गंगराजगुरु वर्धमान के शिष्य महावादी विद्यानन्द का उल्लेख है । उन की शिष्यपरम्परा के सातवें आचार्य त्रिभुवनचन्द्र को सन १०७२ को कुछ दान मिला था उस का इन लेखों में वर्णन है । अतः इन विद्यानन्द का समय सन ९०० के आसपास होना चाहिए –वे राजमल्ल (द्वितीय) के समकालीन थे। हमारा अनुमान है कि ये विद्यानन्द ही श्लोकवार्तिक आदि के कर्ता थे । प्रस्तुत लेखों में उन्हें मूलसंघ-नंदिसंघ-बळगारगण के आचार्य कहा है तथा माणिक्यनन्दि का उन के गुरुबन्धु के रूप में वर्णन है।
३०. माणिक्यनन्दि-अकलंक द्वारा स्थापित प्रमाणशास्त्र को सूत्ररूप में सरल भाषा में निबद्ध करने का कार्य माणिक्यनन्दी ने किया। उन का एकमात्र ग्रन्थ परीक्षामुख जैन तार्किकों के लिए आदर्श सिद्ध हुआ है तथा जैन तर्कशास्त्र के प्रारम्भिक विद्यार्थी के लिए उस का अध्ययन अपरिहार्य है । इस ग्रन्थ में ६ उद्देश हैं तथा सब मिला कर २१२ सूत्र हैं। उद्देशों में क्रमशः प्रमाण का लक्षण, प्रत्यक्ष, परोक्ष, प्रमाण का विषय, फल तथा प्रमाणाभास इन विषयों का विवरण है।
विद्यानन्द के गुरुबन्धु तार्किकार्क माणिक्य नम्दी का उल्लेख ऊपर किया है। हमारे मत से वे ही परीक्षामुख के कर्ता हैं। अतः दसवीं सदी का प्रारम्भ यह उन का समय होगा | प्रचलित मान्यता इस से कुछ भिन्न है । नयनन्दी के सुदर्शनचरित में माणिक्यनन्दी का गुरुरूप
१) राजमल्ल प्रथम तथा द्वितीय के राज्यकाल के लिए देखिए-दि एज गफ इम्पीरियल कनौज पृ. १६०, २) इस लेखमें प्रस्तुत विषय से सम्बद्ध पद्य इस प्रकार हैं-परमश्रीजिनशास नके मोदलादी मूलसंघ निरन्तरमो पुत्तिरे नंदिसंघवेसरंदादम्वयं 4 पुवेत्तिरे सन्दर बळगारमुख्यगणदोळ गंगान्वयक्किंतिवर गुरुगळ त मेने वर्धमन्मानिन्थर धरिणीचक्रदोळ ॥ श्रीनाथर् जैनमार्गोत्तमरेनिसि तपःख्यातियं तदादिदर् सज्ञानामर् वर्धमानप्रारवर शिष्यर् महावादि विद्यानन्दस्वामिगळ तन्मुनिपतिगनुजर तार्विकर्काभिधानाधीनर् माणिक्यनंदिव्रतिपतिगळवर् शासनोदात्तहस्तरु ।। (पिग्राफिया इन्डिका, भा. १५, पृ. ३४७)
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