Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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१८
उपमिति-भव-प्रपंच कथा
इन तीनों ही धर्मों का विशाल साहित्य, आख्यानों और कहानियों का विपूल अक्षय भण्डार बन गया है। इन तमाम कथाओं/पाख्यानों को, हम ऐसा आख्यान कह/ मान सकते हैं, जिसका समग्र कलेवर, धार्मिक स्फुरणा से प्रोत-प्रोत है, किंवा जीवन्त है। आख्यान-साहित्य के प्रथम वर्ग 'धर्मकथा-साहित्य' के अन्तर्गत, ये ही सारी कथाएँ अन्तर्निहित मानी जायेंगी।
__इस तरह, 'धर्मकथा' को परिभाषित करते हुये, यह कहा जा सकता है'जो कथा, धर्म से सम्बन्ध रखती हो, वह 'धर्मकथा' है । और, 'धर्म' वह है, जिसके द्वारा अभ्युदय और मोक्ष की प्राप्ति होती है ।'1
___'वेद' शब्द की व्युत्पत्ति ज्ञानार्थक 'विद्' धातु से होती है । जिसका अर्थ है'ज्ञान' । 'वेद' शब्द का व्यावहारिक उपयोग 'मंत्र' और 'ब्राह्मण' दोनों के लिये किया जाता है ।2 'मंत्र' में देवताओं की स्तुतियां हैं। इन स्तुतियों/मंत्रों का उपयोग यज्ञ आदि के अनुष्ठान में किया जाता है । यज्ञ के क्रिया-कलापों तथा उनके उद्देश्यों प्राशयों/प्रयोजनों की व्याख्या करने वाले मंत्र और ग्रन्थ, ब्राह्मण' कहे जाते हैं । 'ब्राह्मण' के तीन भेद हैं-ब्राह्मण, ग्रारण्यक और उपनिषद । 'पारण्यक' ग्रन्थों में वानप्रस्थ-जीवन-पद्धति की विवेचना की गई है। जबकि उपनिषदों में, मंत्रों की दार्शनिक व्याख्या के द्वारा ब्रह्म का प्रतिपादन किया गया है।
ब्राह्मण ग्रन्थों में, यज्ञ आदि का विधान जटिल हो जाने के फलस्वरूप, उसे सरल और संक्षिप्त बनाने की जब आवश्यकता प्रतीत हुई, तब, सरल सूत्र-शैली अपना कर जिन नवीन-ग्रंथों में उसे प्रतिपादित किया गया, वे ग्रन्थ 'कल्पसूत्र' कहलाये । कल्पसूत्रों में यज्ञ-यागादि, विवाह, उपनयनादि कर्मों का क्रमबद्ध संक्षिप्त वर्णन है । कल्पसूत्र के भी चार भेद किये गये हैं--श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और शुल्व सूत्र । श्रौत सूत्रों में-यज्ञ-याग आदि के अनुष्ठान नियमों का, गृह्य सूत्रों में-- उपनयन, विवाह, श्राद्ध आदि षोडश संस्कारों से सम्बद्ध निर्देशों का, धर्म-सूत्रों मेंवर्णाश्रम धर्म का, विशेष कर राजधर्म का और शुल्व सूत्रों में-यज्ञ के लिए उपयुक्त स्थान निर्धारण, यज्ञ-वेदि का आकार-प्रकार निर्धारण और उसके निर्माण की योजना आदि का वर्णन है । 'शुल्व' का अर्थ होता है—'नापने का डोरा' । वस्तुतः शुल्व सूत्रों को भारतीय ज्यामिति का आद्य ग्रन्थ कहा जा सकता है।
१.
२.
यतोऽभ्युदयनिःश्रेयसार्थसंसिद्धिरंजसा । सद्धर्मस्तग्निबद्धा या सा सद्धर्मकथा स्मृता ।।
-महापुराण-१/१२० मंत्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम्-प्रापस्तम्बः यज्ञ-परिभाषा-३१ कल्पो वेदविहितानां कर्मणामानुपूर्वेण कल्पनाशास्त्रम्-ऋग्वेद-प्रातिशाख्य की वर्गद्वय वृत्ति-विष्णुमित्र
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