Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानिर्युक्तिश्च अ०१
मूलम् - "बेंदियर्तिदियचउरिंदिय - पंचिंदिया य तसा सू० ८ छाया—दीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रिय पञ्चेन्द्रियाश्च त्रसाः " सू० ८ दीपिका - पूर्वं तावत् त्रस - स्थावरभेदेन संसारिणो जीवाः द्विविधा भवन्ति - इति प्रतिपादितम्ं, सम्प्रति-तेषामेव त्रसानां स्थावराणाञ्च स्वरूपाणि विशदरूपेण क्रमशः प्ररूपयितुमाह-बेइं दिय- तिंदिय - चाउरिदिय - पंचिदिया य तसा - " इति - द्वीन्द्रियाः - त्रीन्द्रियाः - चतुरिन्द्रियाः - पञ्चेन्द्रियाः - चकारात् गतित्रसत्वेन बादरतेजोवायुकायिका अपि सा उच्यन्ते । तत्र - स्पर्शन - रसनयुक्ताः द्वीन्द्रियाः - शंख- शुक्ति-वराट-कादयः, स्पर्शन–रसन-प्राण-चक्षुर्युक्ताः – कुन्धु - वृश्चिक - शतपदीन्द्रगोपयूका- लिक्षा-मत्कुण-पिपीलिकादयस्त्रीन्द्रियाः । स्पर्शन - रसन-प्राण - चक्षुर्युक्ताः - देश-मशक - पतङ्ग - भ्रमरादयश्वतुरिन्द्रियास्तु अण्डज - पोतज - जरायुजादयः || सूत्र ८॥
निर्युक्तिः – पूर्वं संसारिजीवानां त्रस - स्थावरभेदेन वैविध्यं प्रतिपादितम्, सम्प्रति तानेव त्रसान्--स्थावरांश्च विशेषरूपेण प्रतिपादयितुं - क्रमशः सूत्रद्वयमाह - "बेंदिय - तिंदिय चउरिंदिय - पंचिंदिया य तसा -" इति । द्वीन्द्रियाः - त्रीन्द्रियाः - चतुरिन्द्रियाः पञ्चेन्द्रियाः चकारात् त्रसत्वेने–बादरतेजोवायुकायिका अपि त्रसाः व्यपदिश्यन्ते । तत्र —— द्वीन्द्रियाः कृमिप्रभृतयः, मूलसूत्रार्थ -- ' बेंदियतिंदिय चउरिंदिय' इत्यादि । ।
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव त्रस हैं ||८||
तत्वार्थदीपिका -- स और स्थावर के भेद से संसारी जीव दो प्रकार के कहे जा चुके हैं । अब उन त्रस और स्थावर जीवों का स्वरूप क्रमशः विस्तार के साथ कहते हैं
नवतत्वनिरूपणम् २७
दीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और 'च' शब्द का ग्रहण करने से बादर तेजस्कायिक तथा वायुकायिक जीव त्रस कहलाते हैं ।
इनमें से जो जीव स्पर्शन और रसना इन दो इन्द्रियों में युक्त होते हैं, वे द्वीन्द्रिय कहलाते हैं, जैसे—–शंख, सीप, कौड़ी आदि । जो स्पर्श रसना और घ्राण इन्द्रियों से युक्त होते हैं, वे त्रीन्द्रिय कहलाते हैं, जैसे—कुन्छु, बिच्छू, शतपदी, इन्द्रगोप, जूं, लीख, खटमल चिउँटी आदि । स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु से युक्त चौइन्द्रिय कहलाते हैं, जैसेडांस, मच्छर, पतंग, भ्रमर बिच्छू आदि अंडज ( अंडे में उत्पन्न होने वाले ), पोतज ( पोत से उत्पन्न होने वाले ) और जरायुज ( जरायु चमड़े की पतली झिल्ली (कोथली) में उत्पन्न होने वाले ) जीव पंचेन्द्रिय होते हैं ॥ ८॥
तत्त्वार्थनियुक्तिक त्रस और स्थावर के भेद से संसारी जीवों के दो भेद कहे जा चुके हैं । अब उनका विस्तार से प्रतिपादन करने के लिए दो सूत्र कहते हैं
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय तथा 'च' शब्द के ग्रहण से बादर तेजस्कायिक और वायुकायिक जीव त्रस कहलाते हैं । इनमें कृमि आदि द्वीन्द्रिय, पिपीलिका आदि
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧