Book Title: Subhashit Ratna Sandoha
Author(s): Amitgati Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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119:६-१७]
६. स्त्री [गुण] दोषविचारपञ्चविंशतिः 117) या विश्वासं मराणां जनयति शतधालीकजल्पप्रपञ्चै
नं प्रत्येति स्वयं तु व्यपहरति गुणानेकदोषेण सर्वान् । कृत्वा दोषं विचित्रं रचयति निकृति यात्मकृत्यैकेनिष्ठां
तां दोषाणां धरित्री रमयति रमणी मानधो नो वरिष्ठः ॥१५॥ 118) उद्यवालावलीभिरमिह भुवनप्लोषके व्यवाहे
रङ्गद्वीचौ प्रविष्टं जलनिधिपयसि प्राहनकाले वा। संग्रामे यारिरौद्रे विविधशरहतानेकपोधेप्रधाने
मो नारीसौख्यमध्ये भवशतअमितानम्तदुःसप्रवीणे ॥ १३ ॥ 119) विद्युइयोतेनं रूपं रजनिषु तिमिरे पीक्षितुं शक्यते थैः
पारं गन्तुं भुजाभ्यां विविधजलचरक्षोभिणी वारिधीनाम् । शातुं चारो ऽमितानां वियति विचरतां ज्योतिषां मण्डलस्य नो चित्तं कामिनीनामिति कृतमतयो दूरतस्तास्स्यजन्ति ॥ १७ ॥
मनुजः न भजति ॥ १४॥ या शतधा अलीकजल्पप्रपञ्चः नराणां विश्वास जनयति । स्वयं तु न प्रत्येति । एकदोगेण सर्वान् गुणान् व्यपहरति । या विचित्र दोष कृत्वा निकृति रचयति । वरिष्ठः मानवः आत्मकूपकनिष्ठा, दोषाणां परित्री, वा रमणी नो रमयति ।। १५|| बइ उद्यज्वालावलीभिः भुवनप्लोषके (लोकदाहके) हण्यवाहे प्रविष्ट घरम् | वा रक्तदीची प्राइनकाकुले जलनिधिपयसि प्रविष्टं वरम्। का विविधशरइतानेकयोधप्रधाने अरिरोटे संग्रामे प्रविए परम् । परं भक्शतजनितानन्तदुःस्त्रप्रवीणे नारीसौख्यमध्ये प्रविष्ट नो वरम् ।। १६ ।। यैः रणनिषु तिमिरे विद्युयोतेन रूपं बीक्षित शक्यते, यैः भुजाभ्यां विविधजलचरक्षोभिणां वारिधीनां पार गन्तुं शस्यते, यः वियति विचरवाम् अमिवाना न्योतिषां मण्डलस्य चारः ज्ञातुं शक्यते, (तैः) कामिनीनां चित्तं (शा) नो (शक्यते)। अतः कृतमतयः ताः दूरतः त्यन्ति ॥ १७ ॥ नष्ट करनेवाली अभिमानिनी उस स्त्रीका सेवन निर्मबुद्धि मनुष्य कभी नहीं करता है।॥१४॥ जोखी सैकड़ों प्रकारके झूठ बचनोंको बोलकर मनुष्योंको विश्वास उत्पन्न कराती है, परन्तु स्वयं उनका विधास नहीं करती है; जो एकही दोषसे समस्त गुणोंको नष्ट करती है, अनेक प्रकारके दोष ( अपराध ) को करके कपटताका व्यवहार करती है, तथा जो अपने कार्यमें दृढ़ रहती है उस समस्त दोषोंकी खानिभूत स्त्रीको कोई भी श्रेष्ठ मनुष्य नहीं रमाता है ॥ १५॥ संसारमें उत्पन्न हुई अपनी ज्वालाओंके समूहसे लोकको भस्म कर देनेवाली अग्निमें प्रवेश करना अच्छा है, जिसमें बड़ी बड़ी लहरें उठ रही हैं तथा जो मगर व षड़याल आदि हिंसक जलजन्तुओंसे भयको उत्पन्न करनेवाला है ऐसे समुद्रके जलमें प्रवेश करना अच्छा है, अथवा जहां नाना प्रकारके बाणों (शस्त्रों) के द्वारा अनेक शूरवीर मारे जा रहे हों ऐसे शत्रुओंसे भयानक युद्धमें भी प्रवेश करना अच्छा है; परन्तु सैकड़ों भवोंमें अनन्त दुखको उत्पन्न करनेवाले स्त्रीसुखके मध्यमें प्रवेश करना अच्छा नहीं है । [तात्पर्य यह कि खोजन्य सुख उपर्युक्त जाज्ज्वस्यमान अग्नि आदिसे भी भयानक है ]॥१६॥ जो जन रात्रिके समय अंधेरे में बिजलीके प्रकाशसे रूपको देख सकते हैं, जो अनेक जलचर जीवोंसे क्षोभको प्राप्त हुए समुद्रोंको भुजाओंसे तैरकर पार जा सकते हैं, तथा जो आकाशमें संचार करनेवाले अगणित ज्योतिषियोंके मण्डलके संचारको जान सकते हैं; वे भी स्त्रियोंके चित्तको उनके मनोगत भावको नहीं जान सकते हैं।
११ जन्म। २ स कृते। ३ स रमण। १ स नावेला। ५ स योधा। ६ स विद्युतघातेन ७स क्षोभिनां। ८ स कृति ।