Book Title: Subhashit Ratna Sandoha
Author(s): Amitgati Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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29 : ११-२३]
११. जरानिरूपणचविंशतिः
289 ) मुक्तिमनसो दृष्ट्वा रूपं यवीयमकृत्रिमं परवशधियः कामक्षिप्तैर्भवन्ति शिलीमुखः । वलितमुखभ्रूमूर्धानं जरसा' धरात्रये झटिति मनुजं चाण्डाल वा त्यजन्ति जनीजनाः ॥ २१ ॥ 290 ) नयनयुगलं व्यक्तं रूपं विलोकितुमहामं पलितकलितो सूर्षा कम्पो श्रुती श्रुतिर्वाजते । वपुषि जरसाश्लिष्टे मष्टं विचेष्टितमुत्तमं मरणचकितो नाङ्गो घंसे तयापि तपो हितम् ॥ २२ ॥ 291) 'तिगतिवृतिप्रज्ञालक्ष्मीपुर: सरयोषितः
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सितकचयलिव्याजानुमर्त्य निरीक्य' जरां गतम् । प्रदर्धात रुवं" तृष्णानारी पुननं विनिर्गता त्यजति हि न वा स्त्री प्रेयसं कृतागसमप्यलम् ॥ २३ ॥
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त्यजन्ति ॥ २१ ॥ जरसा वपुषि आश्लिष्टे श्रुती श्रुतिवजिते । उत्तमं विचेष्टितं नष्टम् लक्ष्मीपुरःसरयोषितः सितकचव लिम्याजात् मत्यं अलंकृतागसमपि प्रेयांसं न त्यजति ।। २३ ।।
दृष्ट्वा मुदितमनसः कामक्षिप्तः शिलीमुखैः मुदितमनसः भवन्ति, जरसा भवस्तिमुखभ्रुमूर्षानं मनुजं वा चाण्डालं मटिति नयनयुगलं व्यक्तं रूपं विलोकितुम् अक्षमम् । पलितकलितः मूर्धा कम्पी । मरणचकितः अङ्गी तथापि हितं तपः न बत्ते ॥ २२ ॥ युतिगतिधृतिप्रज्ञाजरां गतं निरीक्ष्य तृष्णानारी रुषं प्रदधति, पुनः न विनिर्गता हि स्त्री नराः तमोः गुणनाशिनीं परिणतिम् अतिस्पष्टां दृष्ट्या संसाराब्धेः समुतर
है ॥ २० ॥ जो स्त्रियाँ पहले जिसका अकृत्रिम स्वाभाविक सौंदर्य रूप देख कर हर्षित चित्त होती थीं । तथा कामदेवके फेंके हुये बाणोंसे विद्ध होकर उसके आधीन होती थीं, वे ही स्त्रियाँ अब उस पुरुषके जरासे ग्रस्त होनेसे उसको कांतिहीन देख उस वृद्ध पुरुषको चांडाल-भूत समझ कर उसका शीघ्र त्याग करती हैं ॥ २१ ॥ बुढ़ापा आनेसे मनुष्यकी आँखें स्पष्ट देखने में असमर्थ होती हैं। बाल सफेद हो जाते हैं। शिर कॅपने लगता है। दोनों कान किसी बात को सुन नहीं सकते । शरीर जरासे आलिंगित होनेसे नीचे झुकता है। धर्म कार्य, उत्तम व्रत-तप करना सब भूल जाता है। मरणके दिन समीप आनेसे मनुष्य भयसे आश्चर्य चकित होता है । तथापि यह जीव हितकारक तप धारण नहीं करता ॥ २२ ॥ पुरुषको जरारूपी स्त्रीमें आसक्त देखकर रोषसेति - कांति, गति, धृति-प्रज्ञा, बुद्धि, लक्ष्मी वैभव इत्यादि सब स्त्रियाँ उस वृद्ध पुरुषको छोड़ कर चली जाती हैं। परंतु तुष्णा रूपी स्त्री नहीं जाती । ठीक ही है-अपने प्रिय पतिको अपराधी देखकर भी कौन पतिव्रता स्त्री छोड़ सकती है । विशेषार्थ - वृद्धावस्था आने पर कांति आदि घटती है परंतु तृष्णा घटती नहीं । प्रत्युत बढ़ती ही जाती है || २३ || इसलिये जो लोक बुद्धिमान है- शरीरकी रात-दिन प्रत्यक्ष नष्ट होने वाली परिगतिको देखते हैं । वे संसार समुद्रसे पार होनेके लिये तत्पर होकर वीतराग जिनदेवका और पवित्र आगमका
१ स दृष्टा । २ स रजसा, जरापरिणामतः । स त्रयं । ४ स चंडालं । ५ स जहांजनाः । ६ स विवज्जिते । ७ सहितां वपोहितम् । ८ स बुति । ९स निरीक्ष, om. निरीक्ष्य । १० स गताः, गनां व्रजां गतं । ११ स प्रदती चेष, ष विष्ण° ।