Book Title: Subhashit Ratna Sandoha
Author(s): Amitgati Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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सुभाषितसंदोहा
1619:२४-२४ _619) चेन्न पण्यवनिता जगति स्यादनुःखवाननिपुणा' कयमेते।
___ प्राणिनो जननदुःखमपारं प्राप्नुवन्ति पुरु' सोमशक्यम् ॥ २४ ॥ 620) दोषमेयमय गम्य मनुष्य: शुद्धबोधजलधौतमनस्कः। तत्त्वतस्त्यजति पण्यपुरन्ध्री जम्मसहारनिपातनवक्षाम् ।। २५ ॥
इति वेश्यासंगनिषेष पञ्चविंशतिः ॥ २४ ॥ निपुण पष्यवनिता न स्यात् चेत् एते प्राणिनः अपारं पुरु सोढुम् अशक्यं जननदुःख कथं प्राप्नुवन्ति ॥ २४ ।। शुद्धबोधजलघोतमनस्कः मनुष्यः एवं दोषम् अवगम्य जन्मसागरनिपातनवला पण्यपुरन्धी तस्वतः त्यजति ॥ २५ ॥
इति बेश्यासंगनिषेषपञ्चविंशति ॥ २४ ।।।
कार्योंको करता है; वह वेश्या आश्रयके योग्य नहीं है-उसकी संगितिसे सदा ही बचना चाहिये । २३ ।। यदि । संसारके भीतर दुख देने में चतुर वह वेश्या न हो तो ये प्राणो जन्म-मरणरूप संसारके अपार एवं असह्य महान् दुखको कैसे प्राप्त हो सकते हैं ? नहीं हो सकते हैं। अभिप्राय यह है कि वेश्याके निमित्तसे असम संसारके दुखको भोगना पड़ता है, अतः विवेको जनको लससे सदा दूर रहना चाहिये ।। २४ ॥ जिस मनुष्यका मन सम्यग्ज्ञानरूप जलसे निर्मल हो चुका है वह इस प्रकार वेश्याके संगसे होनेवाले दोषको जान करके संसाररूप समुद्र में डुबाने वाली उस वेश्याका वास्तवमें त्याग कर देता है ॥ २५ ।।
इसप्रकार पच्चीस श्लोकोंमें वेश्याकी संगतिका निषेध किया ।
१ स निपुणाः । २ स सुरु for पुरु। ३ स पुरुषोग्दं । ४ स am. "मव । ५ स दक्ष, दक्षा, दक्षी, पुरन्ध्रीजन्म, दक्षम् । ६ स निषेपनिरूपणम् ।