Book Title: Subhashit Ratna Sandoha
Author(s): Amitgati Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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[ 758 : ३०-१९
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सुभाषितसंबोहः 758) सम्यक्त्यशोलमनघं जिनवाक्यतोर्य
यत्तत्र चारुधिषणाः कुरुताभिषेकम् । तीर्थाभिषेकवतो मनसः कवाचित
नान्तर्गतस्य हि मनागपि शुद्धि'बुद्धिः ॥ १९ ॥ 759) चित्तं विशुष्यति अलेन मकावलिप्तं
यो भाषते ऽनतपरो न परोऽस्ति तस्मात् । बाह्यं मलं तनुगतं व्यपहन्ति नीर
गन्धं शुभेतरमपीति वदन्ति सन्तः ॥२०॥ 760) वाग्निभस्म रविमन्त्रधराविभेदा
पछुद्धि ववन्ति बहुधा भुवि किं तु पुंसाम् । सज्ञान शोलशामसंयमशुद्धित्तो न्या नो पापलेपमपहन्तु मलं विशुद्धिः ।। २१॥
शोल्तदयाढ्यं चारित्रवोचिनिधयं मुदितामरुत्वं मिथ्यात्वमीनविकलं करुणादिगाषं ज्ञानोदकम् अनघं सम्यक्त्वशीलं यत् जिनवाक्यतीर्थ यत्र चारुषिषणाः अभिषेकं कुरुत । हि तीर्थाभिषेकवतः अन्तर्गतस्य मनसः कदाचित् मनाक् अपि शुद्धिबुद्धिः न भवति ॥ १८-१९ ।। जलेन भलावलिप्तं चित्तं विशुष्यति इति यो भाषते, तस्मात् परः अनुतपरः न अस्ति । नौर तनुगतं वाह्य पर्ल शुभेतरं गन्धम् अपि अपहन्ति इति सन्तः वदन्ति ।। २० ॥ भुवि वार्यग्निभस्मरविमन्त्रधरादिभेदात् बहुधा शुद्धि वदन्ति । किंतु सज्ञानशीलशमसंयमद्धितः अन्या विशुद्धिः पापलेपम् अपहन्तुं नो अलम् ।। २१ ॥ यः जिनेन् -
निर्मलतासे संयुक्त है, मिथ्यात्वरूप मछलियोंसे रहित है, दया आदिरूप थाहसे सहित है , सम्यक्त्व व शोलसे सुशोभित है, तथा पापके संसर्गसे रहित है; हे निमंलबुद्धि सज्जनों ! उस जिनवचनरुप तीर्थमें आप स्नान करें। कारण यह कि भीतर स्थित मनकी शुद्धि गंगादि तीर्थोंमें स्नानके वशसे कभी व किंचित् भी नहीं हो सकती है ॥ १८-१९ ॥ मलसे लिप्त मन जलसे शुद्ध होता है, ऐसा जो कहता है उसके समान असत्यभाषी और दूसरा नहीं है। कारण यह कि जल शरीरमें संलग्न बाह्य मलको तथा तद्गत सुगन्ध और दुर्गन्धको भी नष्ट करता है, ऐसा सज्जन मनुष्य कहते हैं। अभिप्राय यह है कि चूंकि तत्वज्ञ पुरुष यह बतलाते हैं कि जलमें स्नान करनेसे शरीरगत बाह्म मल व सुगन्ध आदि ही नष्ट होती है, न कि अन्तर्गत पापमल; अतएव जो जन यह कहते हैं कि जलसे मनकी शुद्धि होती है, उनका वह कयन सर्वथा असत्य है ॥ २० ॥ लोकमें जल, अग्नि, भस्म, सूर्यकिरण, मंत्र और पृथिवी ( मिट्टी) आदिके भेदसे शुद्धि अनेक प्रकारकी बतलायी जाती है । परन्तु सम्यग्ज्ञान, शोल, शम और संयमरूप शुद्धिको छोड़कर अन्य कोई भी शुद्धि मनुष्योंके पापरूप मलको नष्ट नहीं कर सकती है ।। २१ । जो मनुष्य जिनेन्द्र भगवान्के मुखसे निकले हुए वचन ( जिनागम ) रूप
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१ स शुद्ध , सिद्ध २ स परोऽस्ति जनों न, यस्मात् । ३ स om, verse 20 3/4 चरण ! - ४ स भस्मि । ५ स सुज्ञान" । ६ स 'हन्तु मलं ।