Book Title: Subhashit Ratna Sandoha
Author(s): Amitgati Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 218
________________ 750 : ३०-११ २०४ सुभाषितसंवोहः 750) दुग्धेन' शुध्यति मषोयटिका यथा नो दुग्ध तु यातिर मलिन स्वमिति स्वरूपम् । नाङ्ग" विशुध्यति तथा सलिलेन बीतं पानीयमेति तु मलीमसतां समस्तम् ॥११॥ 751) आकाशतः पतितमेत्य नवाविमध्यं तत्रापि पावनसमुत्थमलावलिप्तम् । नानाविषावनिगताधुचिपूर्णमों यत्तेन शुद्धिमुपयाति कर्ष शरीरम् ॥१२॥ 752) माल्याम्बराभरणभोजनमानिनीनां लोकातिशायिकमनीयगुणान्वितानाम् । हानि गुणा झटिति यान्ति यमाणितानां __ देहस्य तस्य सलिलेन कथं विशुद्धिः ॥ १३ ॥ 753) जन्त्विन्द्रिया समिदमत्र जमेन शोध केनापि दुष्टमतिना कथितं जनानाम् । यद्देहथुढिमपि कतुंमलं बलं मो तत्पापकर्म विनिहन्ति कर्ष हि सन्तः" ॥१४॥ सेमकूपैः प्रस्वेदवारि मुञ्चति । अस्य जफेन शुद्धिः कर्ष स्यात् ॥ १०॥ यया मषीवटिका दुग्धेन नो इष्पति तु दुग्धं मलिनत्वं याति । तथा सलिलेन पोत्रम् महल न विशुध्यति । तु समस्तं पानीयं मलीमसताम् एति; इति स्वरूपम् ।। ११ ।। यत् अर्णः आकाशतः पतितं नानाविषावनिगताशुचिपूर्ण नवादिमध्यम् एत्य तत्रापि पावनसमुत्यमालिप्तं भवति तेन शरीरं कर्म शुद्धिम् उपयाति 11 १२ ॥ यम् आश्रिताना सोनतिशामिकमनीयगुणान्विताना माल्याम्बरामरममोजनमामिनीनां मुगाः शरिति हानि यान्ति तस्य देहस्य ससिलेन कथं विशुद्धिः स्यात् ।। १३ ।। अत्र केनापि दुष्टमतिना जनानां जलेन शौचं नौ स्रोतोंसे दुर्गन्धित मलको हो छोड़ता है, तथा वो धोया जा करके भी रोमछिद्रोंसे पसोनाके जलको बाहिर निकालता है; इस शरीरकी शुदिष भला जलसे कैसे हो सकती है ? नहीं हो सकती है ॥ १०॥ बिस प्रकार दुषसे स्याहीको वटिका ( गोली ) तो शुद्ध नहीं होती है, किन्तु वह दूध मलिन हो जाता है, उसी प्रकार पानीसे धोनेपर शरीर तो शुद्ध नहीं होता है, किन्तु वह समस्त पानी ही गंदला हो जाता है। यह वस्तुस्वभाव है ॥ ११ ॥ जो जल आकाशसे गिरकर पृथिवीके कपर स्थित अनेक प्रकारको मलिन वस्तुओंसे पूर्ण होता हुआ नदियों के मध्यमें पहुंचता है और फिर वहाँपर वेमसे बहने के कारण उत्पन्न हुए मलसे संयुक्त होता है उससे यह शरीर कैसे शुद्ध हो सकता है ? नहीं हो सकता ॥ १२ ॥ जिस शरीरके आश्रित होकर अलौकिक व रमणीय गुणोंसे संयुक्त माला, वस्त्र, बाभूषण, भोजन और स्त्रीरूप वस्तुओंके गुण शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं उस शरीरकी शुद्धि भला पानीसे कैसे हो सकती है ? नहीं हो सकती है ॥ १३ ॥ यहाँ कोई दुर्बुद्धि मनुष्य जो प्राणियोंको जलसे शुद्धि बसलाता है, यह कोरा इन्द्रवाल है-इन्द्रजालके समान भ्रमपूर्ण है। कारण यह कि जो शरीरकी शुद्धिके भी करनेमें समर्थ नहीं है, हे सज्जनों! वह भला पाप कर्मको कैसे नष्ट कर सकता है ? १ स दुःखेन। २ स दुःखे । ३ स बातु for याति, मातु । ४ स नलिन । ५ स नाग । ६ स नु for तु । ७१ समस्तां.। ८ स माला"। ९ स गुणाटिति । १. स यत्त्विद्रिजाल , बात्विद्रियाल । ११ स orm. verse 14 |

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