Book Title: Subhashit Ratna Sandoha
Author(s): Amitgati Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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सुभाषित संदोहः
919 ) दलितमदनशत्रो भव्य निर्व्याजबन्धोः शमदमयम मूर्तश्चन्द्रशुभ्रोरुकीर्तेः । अमितगतिरभूद्यस्तस्य शिष्यो विपश्चिद्विरचितमिदमयं तेन शास्त्रं पवित्रम् ॥ ५॥ 920) यः सुभाषितवोहं : शास्त्रं पठति भक्तितः । केवलज्ञानमासाद्य यात्यसौ मोक्षमक्षयम् ॥ ६ ॥ 921) यावच्चन्त्र दिवाकरो दिवि गतौ भिन्त स्तमः शावरं सावन्मेतरङ्गिणीपरिवृढौ' नो मुञ्चतः स्वस्थितिम् । यावद्याति तरङ्गभङ्गुरतनुगंङ्गा हिमाभू तावच्छास्त्रमिदं करोतु विदुषां पृथ्वीतले संभवम् ॥ ७ ॥ तत्रिदशवसति विक्रमनृपे
२३८
922) समा
सहस्त्रे वर्षाणां प्रभवति हि पश्चाशदधिके ।
समाप्तं पञ्चम्यामदति धरणों मुझनृपतो
सिते पक्षे पौधे बुधहितमिवं शशस्त्रममघम् ॥ ८ ॥
[ 919 : ३२-५
जनों के निष्कपट बन्धु राम, दम और यमकी मृतिस्वरूप; तथा चन्द्रके समान घवल महती कीर्तिसे सुशोभित उन माधवसेन सूरिके शिष्य जो विद्वान् अमितगति हुए उन्होंने इस अर्थपूर्ण पवित्र शास्त्रको रचा है || ५ || जो भक्तिपूर्वक इस सुभाषितरत्न संदोह शास्त्रको पढ़ता है वह केवलज्ञानको प्राप्त करके अविनश्वर मोक्षपदको प्राप्त होता है ॥ ६ ॥ जब तक आकाशमें स्थित चन्द्र और सूर्य रात्रिके अन्धकारको नष्ट करते हैं, जब तक मेरु और नदियोंका अधिपति समुद्र अपनी स्थितिको नहीं छोड़ते हैं, और जब तक तरंगोंसे क्षीण शरीरवाली गंगा नदी हिमालय पर्वत से पृथिवीको प्राप्त होती है— पृथिवीके ऊपर बहती है; तब तक यह शास्त्र पृथिवीतलपर विद्वानोंको प्रमुदित करे ॥ ७ ॥ विक्रम राजाके पवित्र स्वर्गको प्राप्त हुए पचास अधिक एक हजार ( १०५० ) वर्षोंके बीत जाने पर मुंज राजाके पृथिवी पर शासन करते हुए-मुंजके राज्यकालमें - पौष मास के शुक्ल पक्ष पंचमी तिथिको पण्डितजनोंका हित करनेवाला यह निर्दोष शास्त्र समाप्त हुआ ॥ ८ ॥
१ स मूर्ति । २ स ' कीर्तिः । ३ समये । " वसतिः, " वसतिवि सते for वसति । ८ स समाप्ते ।
४स संदेहं संदोह । ५ । ६ स दृठौ । ७ स