Book Title: Subhashit Ratna Sandoha
Author(s): Amitgati Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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362 : १८-१३]
१८. सुजननिरूपणचतुर्विशतिः 460) तृष्णा छिन्ते' शमयति मदं ज्ञानमाविष्करोति
नोति सूते हरति विपद संपवं संचिनोति । पुंसां लोकद्वितयशुभवा संगतिः सज्जनानां
कि वा कुर्यान्न फलममलं बुःखनिशिक्षा ॥११॥ 461) चित्तालावि श्यसनविमुखं शोकतापापनोवि
प्रजोत्पादिश्रवणसुभगं न्यायमार्गानुयामि। तभ्यं पश्यं व्यपगतम' सायकं मुक्त बाघ
यो निर्वोषं रचयति वचस्तं युषाः सन्तमाहुः ॥ १२॥ 462) कोपो विद्युत्स्फुरित तरलो प्रावरेखेव मैत्री
मेस्थेयं चरित मचलः सर्वजन्तूपचारः । बुद्धिधमंग्रहमचतुरा बाक्य"मस्तोपता
कि पर्याप्तं न सुजनगुणरेभिरेषात्र लोके ॥ १३ ॥ मोमामृतमययपुः, ध्वान्तघाती, रूपातकीतिः, पूज्याचारः मसौ सुजनः भाति ॥ १० ॥ लोकद्वितयशुभदा दुःसनिशिक्षा सज्जनानां संगतिः पुंसां तृष्णां छित्त, मदं शमयति, ज्ञानम् आविष्करोति, नीति सूते, विपर हरति, संपवं संचिनोति । कि वा अमलं फलं न कुर्यात् ॥ ११ ॥ यः चित्तालादि, पसनविमुखं, शोकतापापनादि, प्रमोत्पादि, श्रवणसुभगं, न्यायमार्गाजुयायि, तथ्य, पथ्यं, व्यपगतमदं, सार्थक, मुक्तबाघ निर्दोष बचा रचति, जुधाः तं सन्तम् आहुः ॥ १२॥ [ सता] दोष-दोषा (रात्रि) के संयोगसे रहित होता है उसी प्रकार सज्जन भी पद्मानन्दी-पद्मा (लक्ष्मी) को आनन्दित करनेवाला, जडिमा (अज्ञानता) का विघातक और धूतदोष-दोषोंसे रहित होता है; अतएव वह सूर्यके समान है। जिसप्रकार चन्द्रमा शीत (शीतल), सोम (अमृतको उत्पन्न करनेवाला), अमृतमय शरीरसे सहित और अन्धकारका विनाशक होता है उसी प्रकार सजन भी शीत-जीवको सन्तप्त करनेवाले क्रोधादिसे रहित, सोम व अमृतमय शरीरसे सहित प्राणियोंको आह्लाद कारक शान्त शरीरसे सहित और अज्ञानरूप अन्धकारका विनाशक होता है, अतएव चन्द्रमाके भी समान है। इसीलिये उसका यश सब दिशाओंमें व्याप्त रहता है । उसको सदाचारिताके कारण लोग उसकी पूजा करते हैं ॥ १० ॥ प्राणियोंके लिये दोनों ही लोकोंमें उत्तम फलको देनेवाली सज्जनोंको संगति विषयतृष्णाको नष्ट करती है, गर्वको शान्त करती है, समीचीन ज्ञानको प्रगट करतो है, नीति (न्याय आचरण) को उत्पन्न करती है, विपत्तिको हरती है और सम्पत्तिको संचित करती है। अथवा ठीक ही है जो सम्जन संगति प्राणियोंके समस्त दुःखोंके नष्ट करनेमें समर्थ है वह कौन-से निर्दोष फलको नहीं उत्पन्न कर सकती है ? अर्थात् वह सब ही उत्तम फलको उत्पन्न करती है ॥ ११॥ जो वचन मनको प्रमुदित करता है, द्यूतादि व्यसनोंसे विमुख करता है, शोक व सन्तापको नष्ट करता है, बुद्धिको विकसित करसा है, कानोंको प्रिय लगता है, न्यायमार्गका अनुसरण करता है, सत्य है, हितकारक है, अभिमानसे रहित है, सार्थक है और बाधासे रहित है, ऐसे निर्दोष वचनको जो रचता है-बोलता है-उसको पण्डित जन सज्जन बसलाते हैं ।। १२ ।। सज्जनोंका क्रोध बिजलीकी चमकके समान चंचल है-शीघ्र ही नष्ट होनेवाला है, मित्रता
१ स तृष्णा चिते । २ स विपदां संपदा । ३ स दक्ष्या, °दक्षाः । ४ स °ल्हादित्र्यसन । ५ स °मुखः । ६ स "नुजायि । ७ स मलं । ८ स मुक्ति । ९ स स्फुरति तरलो। १० स चरत°, चरति । ११ स वाध्य । १२ स पपातं । १३ स om. कि ।