Book Title: Subhashit Ratna Sandoha
Author(s): Amitgati Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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[२४. वेश्यासंगनिषेधपञ्चविंशतिः । 596) सत्यशौचशमसंयमविद्याशीलवृत्त गुणसस्कृतिलज्जाः।
याः क्षयन्ति पुरुषस्य समस्तास्ता बुधः कमिहेछति वेश्याः॥१॥ 597} यासु सक्त मनसः क्षयमेति ख्यमापदुपयाति समृद्धिम् ।
नियता भवति मश्यति कोसिसा भजन्ति गणिकाः किमु मान्याः ॥२॥ 598) धर्ममति तनुते पुरु पापं या निरस्यति गुणं कुरुते ऽन्यम् ।
सोस्यमस्यति स्वाति व बुलं तां विगस्तु गणिकां बहुपोषाम् ॥३॥ 599) अल्पनं व जघनं च यवीयं निन्धलोकमल विग्ध"मवाव्यम् ।
पथपोषितम"ननिमित्ता तां नरस्य भजतः किमु शौचम् ॥ ४॥ 600) संवाति हवये ऽज्यमनुष्यं याभ्यमावति दृष्टिविशेषः ।
अम्पमपिनमतो भगते सो को दुषः भयति पय"पुरंधीम् ॥ ५॥
याः पुरुषस्य समस्ताः सत्यशोचशमसंयमविद्याशीलवृप्तगुणसत्कृतिलज्जाः क्षयन्ति ताः वेश्याः इह बुधः कथम् इच्छति ॥ १॥ यासु सक्तमनसः दम्य भयम् एति, आपत् समृद्धिम् उपयाति, निम्धता भवति, कीति: नश्यति ताः गणिकाः मान्याः भजन्ति किम् ॥ २ ॥ या धर्मम् अत्ति, पुरु पापं तनुते, गुणं निरस्यति, अम्यं कुस्ते, सोस्यम् अस्यति, दुःखं च ददाति, तां बहुदोर्षा गणिकां पिक अस्तु ॥ ३ ॥ यदीयं जल्पनं च जपनं च निन्दलोकमलविषम् अवाच्यम् । अननिमित्ता ता पण्पयोषित भजतः नरस्य शौचं किमु ॥४॥ या हृदये अन्धमनुष्यं संवधाति, अम्यं दृष्टिविशेष : आह्वयति, अतः अन्यम् अधिनं भजते । कः युधः तां पथ्यपुरुषी अयति ॥ ५ ॥ पण्पयोषिति विषक्तमनस्कान् श्रीकृपाम तितितिकीतिप्रीतिकान्तिसमसापटुतासा:
जो वेश्यायें यहाँ पुरुषके सत्य, शौच, शम, संयम, विद्या, शील, चारित्र, गुण, सरकार और लज्जा इन सब गुणोंको नष्ट कर देती हैं उन वेश्याओंकी विद्वान मनुष्य कैसे इच्छा करता है ? नहीं करता है उनको अभिलाषा अविवेकी जन ही किया करते हैं ॥ १ ।। जिन वेश्यों के विषयमें आसक्तचित्त मनुष्यका धन नाशको प्राप्त होता है, विपत्ति वृद्धिंगत होती है, निन्दा होती है, और कीर्ति नष्ट होती है उन वेश्याओंका सेवन क्या कभी मान्य (प्रतिष्ठित) पुरुष करते हैं ? नहीं करते ॥ २॥ जो धर्मको खा जाती है-नष्टकर डालती है, महापापको विस्तृत करती है, गुणको नष्ट करती है, दोषको उत्पन्न करती है, सुखका विघात करती है, और
और दुखको देती है; उस बनेक दोषोंसे परिपूर्ण वेश्याको धिक्कार हो ॥ ३॥ जिसका मुख और जघन नीच लोगोंके मलसे लिप्त और अवाच्य होता है उस अनर्थको कारणभूत वेश्याका सेवन करनेवाले मनुष्यके क्या पवित्रता रह सकती है ? नहीं रह सकती ॥ ४ ॥ जो वेश्या मनमें अन्य मनुष्यको लक्ष्य करती है-मनसे किसी अन्य पुरुषका विचार करती है, कटाक्षोंके द्वारा दूसरेको बुलाती है, तथा इससे भिन्न दूसरे धनी मनुष्यका सेवन करती है; उस वेश्याका आश्रय कौन-सा विद्वान करता है ? कोई नहीं॥५॥ जिन मनुष्योंका मन
१ स वृत्ति , °वत । २ स क्षिपंति । ३ स समस्तो को वुध कथ। ४ सशक्त । ५ स तां । ६ स गणिकां । ७ स गुरु १८ सा for या । १ स गणिकाबहदोपं 1 १० ल II. च । ११ सदाब १२ सयोषितमर्थ । १३ स को वुधा, बुधैः । १४ स पुण्य ।