Book Title: Subhashit Ratna Sandoha
Author(s): Amitgati Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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[ १५. जठरनिरूपणषड्विंशतिः ] 375) तावअल्पति सर्पति तिष्ठति माद्यति विलसति 'विभाति ।
यावन्नरो न जठरं वेहभृतां जायते रिक्तम् ॥१॥ 376) गद्यकरिष्य हातो निक्षिप्ततव्यनिगमद्वारम।
को वार शक्यः कर्तुं जठरघटोपूरणं मयः ॥२॥ 377) शक्येतापि समुद्रः पूरयितुं निम्तगाशतसहलेः।
नो शक्यते कदाचिज्जठरसमुद्रो ऽन्नसलिलेन ॥ ३ ॥ 378) वैश्वानरो न तुप्यति नानाविष काष्ठनिधयतो यद्वत् ।
तवज्जठरहताशो नो तृप्यति सर्वयाप्यशनः ॥ ४ ॥ 379) यस्यां वस्तु समस्तं न्यस्त नाशाय कल्पते सततम् ।
दुष्परोवरपिठरों' कस्ता शक्नोति पूरयितुम् ॥ ५॥ 380) तावन्नरः कुलीनो मानी शूरः प्रजापते स्पर्थम् ।
यावज्जठरपिशाचो वितनोति न पोजनं देहे ॥६॥
यावत् देहभृती जठरं रिक्तं न जापते तावत् नरः जल्पति , सर्पति, तिष्ठति, माति, विलसति, विभाति च ॥ १॥ यदि वातः निक्षिप्तद्रव्यनिर्गमद्वारम् अकरिष्यत् कः वा मत्यः जठरघटीपूरणं कर्तुं शक्यः ।। २ ।। समुद्रः अपि निम्नगाशतसहस्रः पूरयितु शक्येत । जठरसमुद्रः अन्नसलिलेन कदाचित् नो शक्येत ॥ ३॥ यत् वैश्वानरः नानाविषकाष्ठनिचयतः न तृष्यति, सद्वत् जठरहताशः अशनैः सर्वथापि नो तृप्यति ॥ ४॥ यस्यां सततं न्यस्तं समस्तं वस्तु नाशाय कल्पते तां दुष्पूरोदरपिठरी पूरयितुकः शक्नोति ।। ५ ।। नरः तावत् कुलीनः मानी अत्यर्ष शूरः प्रजायते । यावत् जठरपिशाचः देहे
जब तक प्राणियोंका पेट खाली नहीं होता अर्थात् भरा होता है तभी तक मनुष्य वार्तालाप करता है, चलता है, उठता बैठता है, हर्षित होता है, आनन्द मनाता है और शोभित होता है। पेट खाली होते हो सब उछल-कूद बन्द हो जाती है ॥ १ ॥ अब वायु इस उदररूपी घड़ेमें डाले गये पदार्थोंके निकलनेका द्वार बनाता है तब कौन मनुष्य इस उदररूपी घहेको भरनेमें समर्थ है। अर्थात् इधर हम भोजन करते हैं उधर मलद्वारसे पूर्व संचित द्रव्य निकल जाता है ।। २॥ लाखों नदियोंसे समुद्रको भरना तो शक्य है। किन्तु अन्नरूपी जलसे उदररूपी समुद्रको भरना कभी भी शक्य नहीं है ॥ ३ ॥ जैसे आग नाना प्रकारके काष्ठोंके ढेरसे तृप्त नहीं होती । उसी प्रकार उदरकी आग विविध प्रकारके भोजनोंसे सर्वथा तृप्त नहीं होती ।। ४ ।। जिस उदररूपी पिटारीमें रखी हुई समस्त वस्तु निरन्तर नष्ट होती रहती है, उस कभी न भरनेवाली पिटारीको कोन भर सकता है ॥ ५॥ जब तक यह पेटरूपी पिशाच शरीरमें पीड़ा पैदा नहीं करता तब तक ही मनुष्य कुलीन, मानी और अत्यन्त शूरवीर रहता है । विशेषार्थ---जब पेटमें भूख सताने लगती है और उसको भरना आवश्यक हो जाता है तब मनुष्यके सब सद्गुण विलीन हो जाते हैं और उसे पेटके लिये दूसरोंको खुशामद
१ स orm. च । २ स करिष्यति, पद्यत्करिष्यति । ३ स को नाम । ४ स शक्य शक्यत । ५ स नानाविषि ६ स पिठरी। ७स पीडित। ८ स देदो ।