Book Title: Subhashit Ratna Sandoha
Author(s): Amitgati Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
View full book text
________________
७३
274: ११-६]
११. अरानिरूपणचतुर्विंशतिः 272) भवति मरणं प्रत्यासन्नं विनश्यति यौवनं
प्रभवति जरा सर्वाङ्गाणां विनाश विधायिनी। विरमत' बुधाः कामार्थेभ्यो वर्षे कुवतावर'
वचितुमिति या 'कर्णोपान्ते स्थितं पलित बने ॥ ४॥ 273) मदनसदृशं यं पश्यन्ति विलोपनहारिणी
शिथिलततनुः कामावस्या गता मदनातुरा। तमपि अगता शोचं मत्य बलादिह भोज्यते
जगति युवतीर्वा भैषज्यं विमुफ्तरतस्महा" ॥५॥ 274) भवति विषयाम्मोक्तुं भोक्तुं न च क्षमचेष्टितो ___वपुषि अरसा जीर्ण वेही विभूतबल:१५ परम्।
रसति तरसा स्वस्थीनि" श्या" यथा अपयोग्मितः
कररसनया धिजीवाना विचेष्टितमीपशम् ॥ ६॥ रचयति गतिकति तनोति । अने अनुशा निन्दाम् अनर्थपरंपरा (च) जनयति । देहात सुरभि गन्धं हरति ॥ ३ ॥ बुधाः, मरणं प्रत्यासन्नं भवति, यौवनं विनश्यति, सर्वाङ गाणां विनाशविधायिनी बरा प्रभति, कामापेभ्यः विरमत, इर्षे आदरं कुरुत, इति जने वदितुं वा कर्णोपान्ते पलितं स्थितम् ॥ ४॥ इह जगति विलोचनहारिणी युवतिः यं मत्यं मदनसदृर्श पश्यन्ती कामावस्था गता मदनातुरा (भवति स्म सैव अषुना) शिपिलिततनुः विमुफ्तरतस्पृहा जरमा शीर्णम् अपि त भैषज्यं । वा बलात् भोज्यते ॥ ५ ॥ वपुषि जरसा जीर्ण विधूतबलः देही विषयान भोक्तुं मोक्तुं च न समष्टितो भवति । परंतु
है। आँखें घुमती रहती है । टूटे-फूटे अस्पष्ट वचन मुखसे निकलते हैं। चलते समय पैरमें पैर अटक जाते हैं। चलते चलते गिर पड़ता है । लोक उपहास-निंदा करते हैं । शरीरसे दुर्गन्धी फैलती है। इस प्रकार मदिरापान नाना अनर्थ परंपराका कारण होता है। उसी प्रकार वृद्धावस्थामें शरीर-पष्टी हिलती है । दृष्टि में ज्योति कम होनेसे स्पष्ट नहीं दीखता । भ्रांति पैदा होती है। मुखसे दूटे-फूटे कुछके कुछ शब्द निकलते हैं। पांवमें पलनेकी शक्ति न होनेसे पैरमें पैर अटकते हैं। चलते-चलते गिर पड़ता है। बालक लोक हंसी उड़ाते हैं। शरीरसे दुगंधी फैलती है । इस प्रकार वृद्धावस्था नाना अनर्थ परंपराका कारण बन जाती है ।। ३ ॥ वृद्धावस्था आनेपर जो शिरमें केश श्वेत हो जाते हैं वे मानों लोकोके कानके पास आकर अपने आगमनसे इस बातको सूचना देते हैं कि-हे सज्जनों, हिसाहित विवेकीजनों सावमान हो, तुम्हारा मरण अब समीप आया है। यौवनकी अवधि पूरी हो चुकी है । सरुणावस्था नष्ट हो गई है। सर्व शरीरके अवयवोंको शिथिल बनाने वाला बुढ़ापा आ गया है । इसलिये अब तो काम पुरुषार्थको और अर्य पुरुषार्थको छोड़ दो। काम और अयं पुरुषार्थसे अपनी उपयोग वृत्ति हटाकर धर्म पुरुषार्थमें अपनी उपयोग वृत्ति लगायो । धर्मका आदर करो। अंतके दिनोंमें भी कुछ अपना आत्महित कर लो॥ ४ ॥ अपने नेत्र कटाक्षोंसे पुरुषोंके चित्तको हरण करनेवाली, जो स्त्री युवावस्थामें जिस मदन सदृश कामी पुरुषको देखकर मदनसे पीड़ित होकर फाम विकारको प्राप्त होती थी। अब उसो पुरुषको वृद्धावस्थामें बुढ़ापेसे जीर्ण शीर्ण देखकर कामको इच्छासे रहित हो जाती है। फिर भी औषधके समान जबरन भोगी जाती हैं ॥५॥ यद्यपि बुढ़ापेसे ग्रस्त पुरुष निर्बल हो जाता है, उसको शारीरिक शक्ति
१ स विरमति, विरमता । २ स वृष । ३ स कुरुते १४ स कणें । ५ स स्थिति । ६ स पश्यति । ७ स हारिणि । ८ स कानावस्था, काना, कांता । ९ स तदपि । १. स orL. मुवति । ११ स विमुक्तस्पृहा । १२ स भोक्षु, भोक्तुं । १३ समक्ष । १४ स जीर्णा, जीर्णो । १५ स विधुत', विमूवितवलः । १६ स स्वस्थीनि । १७ स श्चा, स्वा।
सु. रां, १०