Book Title: Subhashit Ratna Sandoha
Author(s): Amitgati Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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सुभाषितसंदोहः
208) परोपदेशं स्वहितोपकारं ज्ञानेन देही वितनोति लोके । जहाति दोषं अयते गुणं च ज्ञानं जनेश्शेन समर्थनीयम् ॥ २९ ॥ 209) एवं विलोक्यास्य गुणाननेकान् समस्तपापारि निरासदक्षान् । विशुद्धयोषा न वाचनापि ज्ञानस्य पूजां महतों त्यजन्ति ॥ ३० ॥ इति ज्ञाननिरूपणात्रिंशत् ॥ ८ ॥
[ 208 : ८-२९
पीलव्रतष्यानतपःकृपासु रागं विदधाति ।। २८ । लोके वेही ज्ञानेन परोपदेशं ( वितनोति), स्वहितोपकारं वितनोति, दोघं जहाति, गुणं च श्रयते । तेन जनैः ज्ञानं समर्चनीयम् ॥ २९ ॥ विशुद्धबोषाः एवम् अस्य शानस्य समस्त पापारिनि रासदक्षान् अनेकान् गुणान् विलोक्य, कदाचन अपि महतीं पूजन यजन्ति ॥ ३० ॥
॥ इति ज्ञाननिरूपणात्रिंशत् ॥ ८ ॥
रहते हैं || २८ || इस लोकमें ज्ञानी पुरुष ज्ञानके बलसे अपना आत्म कल्याण करता है तथा परोपदेश देकर अन्य जीवोंका भी सहज कल्याण कर सकता है। काम-क्रोधादि विकार भावोंको सर्वथा हेय जानकर छोड़ता है। दोषोंसे बचनेका उपाय करता है । तया रत्नत्रय गुणोंका सदा आश्रय करता है। इसलिये ज्ञानी पुरुषोंके द्वारा ज्ञान सदा आदरणीय पूजनीय है। ज्ञानी जनोंको सदेव शानकी ही आराधना करनी चाहिये ।। २९ ।। इस प्रकार ज्ञानके समस्त पापोंका नाश करनेमें समर्थ अनेक गुणोंका विचार करके विशुद्ध ज्ञानधारी पुरुष ज्ञान देवताकी महान् पूजा-आराधना करनेमें कभी भी प्रमाद नहीं करते। निरन्तर ज्ञान देवताकी ही आराधना करते है ॥ ३० ॥
१ स देश । २ स Om इति, ०निरूपण, इति ज्ञाननिरूपणम् ।