Book Title: Shripalmaynamrut Kavyam
Author(s): Naychandrasagar
Publisher: Agamoddharak Pratishthan

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Page 13
________________ श्रीपाल-. काव्यम् मयणामृत-18 वैभार-विपुलाख्याभ्यां गिरिभ्यां समलङ्कृता । धन-धर्मेषु धूर्यास्ति पुरी राजगृही शुभा ॥९॥ श्रेणिको राजते भूपः शुद्ध-सम्यक्त्व धारकः । प्रसिद्धोऽयं प्रतापेन दानवारि-सुवाहकः ॥१०॥ & सुनन्दा-चेल्लणाद्याश्च तस्य जायाः पतिव्रताः । रमन्ते रति-रूपेण कुर्वन्ति जिन-सेवनम् ॥११॥ अभयः कोणिको हल्लो विहल्लाद्याश्च तत्सुताः । शस्त्र-शास्त्रेषु दक्षास्ते लक्ष-लक्षण-लक्षिताः ॥१२॥ राज्यं पालयते राजा प्रसन्ना वसति प्रजा । गीयन्ते सद्गुणास्तत्रभूपते गरैः सदा ॥१३॥ श्रीगौतमगणधर आगमनम् देशना प्रारंभः | संसार-सागरे मज्जत्-प्राणिनामेक-तारकः । तत्रैकदा पुरोद्याने श्रीवीरः समवासरत् ॥१४॥ | प्रेषयति ततः स्वामी गौतमं गुण-धारिणम् । राजगृहीं शुभं क्षेत्रं भव्यानां धर्म-हेतवे ॥१५॥ सगण: श्रीगणीन्द्रश्च जिनादेशानुसारतः । राजगृह्यां सदुद्यानं मण्डयति महामनाः ॥१६॥ | विज्ञायागमनं तेषां नृपस्तूद्यानपालकैः । निजद्धया सुसमेतोऽथ वन्दनार्थमुपागतः ॥१७॥ SERIES Jain Education Inter 21 201005 For Private & Personal use only Mainelibrary.org

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