Book Title: Shripalmaynamrut Kavyam
Author(s): Naychandrasagar
Publisher: Agamoddharak Pratishthan
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श्रीपालमयणामृत
काव्यम्
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* ॥ श्री श्रीपाल-मयणामृत-काव्यम् ॥ * नत्वा मुदा त्रियोगेन पार्श्वशवेश्वराभिधम् । ध्यात्वा नवपदी चित्ते सद्गुरुञ्च सुभावतः ॥१॥ | संस्मृत्य श्रुतदेवीञ्च श्रीश्रीपालकथा शुभा । नवपदस्वरूपार्था मया विस्तीर्यते मुदा ॥२॥ श्रोणीस्थापितपाणिर्यः प्रसारितपदो नरः । स्थितः वैशाख-संस्थाने भ्राम्यश्चापि दिवानिशम् ॥३॥ लोकाकाशे तथाकारे माने रज्जु-चर्तुदशे । पञ्चास्तिकाय-सम्पूर्णे दृष्टे केवलिना तथा ॥४॥ ऊर्ध्वाधो-मध्यभागेन त्रिधा लोको विभाव्यते । ऊर्श्वे देवा विराजन्ते ह्यधोभागे तु नारकाः ॥५॥ मध्यलोकस्तु विज्ञेयस्तिर्यग्लोकाभिधानतः । द्वीपोदधि-क्रमेणात्र सन्ति तेऽसंख्यमानतः ॥६॥ जम्बूद्वीपोऽस्ति तन्मध्ये लक्ष-योजननिस्तलः । सप्तक्षेत्रमयस्तस्य मध्ये मेरूस्सुशोभितः ॥७॥ | दक्षिणे भरते क्षेत्रे मध्यखण्डे विराजिते । मगधाभिध-देशेऽस्ति मौलिरत्न समे शुभे ॥८॥
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